पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१८९

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बाल्हा मालाव] हो वहां यह पद रखना चाहिए-'ज्यादा कौन कर बकवादि'। ८. मंगलाचरण में यह पद अवश्य लाने चाहिए-'मूले अक्षर देव बताय', अथवा ९. 'जो २ अच्छर मात्रा मूलों मोरे कंठ बैठि लिख जाव ।' १०. गावन वारे को गरु दीजों ओ बनवैए दीजो ताल, नाचन वारे को नैना देव मरद को देव ढाल तरवारि' अथवा, ११. जो सुर बांधे ढोलन को बांधे ताल मंजीरन, क्यार, गरो गवैया को जो बांधे तेहिका खांय कालिका माय' । जहाँ शीघ्रता का वर्णन हो यहाँ 'बीत घरी २ क बेरि ।' १३. उत्सुकता, संदेह, शोक, अधीर्यादि के वर्णन में, 'हाय दैया गति जानि न जाय । १४. उपदेश, उद्बोधन तथा साहसप्रदान में 'राम बनैहै तो बनि जैहैं बिगरी ( तथा 'भैया' ) बनत २ बनि जाय ।' १५. किसी अच्छे काम का फल सूचित करने में, 'कीरति चली जुगाधिन जाय ।' १६ सब कर्म विमुखता पर भय दिखाने में, 'वहिं परे खटोली मा सरि हो घर में तिरिया देहे फंकाय अथवा १७. 'कौवा गोध मांस न खाय ।' १८ अपना साहस दिखाने में, 'खटिया पर मिले बलाय' तथा १९. 'पांव पछाड़ी हम परिबे ना ( चाहे ) तन धंजी २ उड़ जाय' तथा २०. चाहे इंद्र बरूसे सांगि, तथा २१. 'चाहे मान रहै चहै जाय ।' २२. कार्यदृढ़ता में, 'दुइ मां एक अंकु रहि भाय', तथा २३. 'सब महनामथु जाय पटाय ।' २४. जहाँ यत्न करने पर भी कार्यसिद्धि न हो वहाँ, 'जो हरि हरै तो राखै कौन' तथा 'हम पर ('तुम पर' या 'वहि पर' जैसा मौका हो)रूठि गए भगवान ।' २५. किसी बैठक के वर्णन में, "बिछे गलीचा उइ मखमल के जहं मोरवन लग पायं समायं ।' २६. किसी नृत्यसभा के वर्णन में, 'तबला ठनकै बृनबासिन को (वृनवासिनके बदले चाहे जिस देश के बाद्यकार का नाम हो ) बंगला ( अथवा जो स्थान हो : मां होय परिन का नाचु । अथवा २७. बारा जोड़ो नचे पतुरिया सोरह जोड़ भवैयन क्यार ( कुछ बारह सोलह का नियम नहीं है )। २८. नृत्य बिसर्जन में, 'नवत कंवनी ठाढी । रहि गई मंडु मन तबला धरे उतारि ।' २१. बीर, सभा, 'तेगन के संग तेगा रगर ढालै. रगर २ रहि जायं । ३०. अथवा, 'मछरी बोधनि धरी कटार ।' ३१. वा, "टिहना धरे नगनि तरवारि ।' ३२. ऐसा सभा वा युद्ध की समाप्ति में, ज्वानन खोलि धरे हथियार ।' ३३. राजसभा में, 'लगो कचहरी प्रथीराज ( वा नुनि आह्रा अथवा पर मालिक तथा च कोई नाम ) की बैठे बड़े २ उमराय ।' ३४. अथवा, 'भरमाभूत लगे दरबार । ३५. वा, बिन घर भारी लगे दरबार ।' ३६. ऐसे दरबार में कोई प्रस्ताव उठने पर, 'कलस सोबरन को मंगवाओ तेहि पर बीरा दओ धराय । है कोई जोधा मेरी नगरी (मजलिस, सेना वा कोई स्थान का नाम ) मां जो महुवे ( दिल्ली वा कोई नगर तथा कार्य ) पर पान चबाय ।' ३७. किसी दूत का आगमन, 'तब लग दाखिल हैगा झुकि २ कर बंदगी लगा।' ३८. अथवा, 'सात कदम ते करी बंदगो धावन हाथ जोरि रहि जाय ।' ६९. पा 'सात कुन्नसे ( कोरनिश ) तेरह मोजरा जस कुछु राजन के व्यवहार ।' ४०. सभा की समाप्ति, 'उठी कचेहरी भरौं परिगा ओ बरखास भए दरबार ।' ४१. पत्र पढ़ने की. रोति, 'खोलि कदरनी ते बंद का बांकुइ आंकु नजरि करि जायं'; आजकल होना चाहिए, 'फारि लिफाफा रे चुटकी से ।' ४२. और, 'पहिले बाचे (वा लिखि गए)