पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२०५

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धरतीमाता ] १८३ को प्रणाम करके श्री पुष्पदंताचार्य महिम्न में जिनकी स्तुति की है, उन शिवजी की महिमा, दंतवक्त्र शिशुपालादि के संहारक श्रीकृष्ण की लीला ही गा चले तो कोटि जन्म पार न पावें । नाली में गिरी हुई कौड़ो को दांत से उठाने वाले मक्खीचूसों की हिमो किया चाहें तो भी लिखते २ थक जाय! हाथीदांत से क्या २ बस्तु बन सकती है ? कलों के पहियों में कितने दांत होते हैं, और क्या २ काम देते हैं, गणित में कोड़ी २ के एक २ दांत का हिसाब से लग जाता है, वैद्यक और धर्मशास्त्र में दंतधा- वन की क्या विधि है, क्या फल है, क्या निषेध है, क्या हानि है, पद्धतिकारों ने 'दीर्घदंता क्वचिन्मूर्खा' आदि क्यों लिखा, किस २ जानवर के दांत किस २ प्रयोजन से किस २ रूप गुण से विशिष्ट बनाए गए हैं ? मनुष्यों के दांत उजले, पीले, नीले, छोटे, मोटे, लंबे, चौड़े, घने, खुड़हे के रीति के होते हैं, इत्यादि अनेक बातें हैं जिनका विचार करने में बड़ा बिस्तार चाहिए । बरंच यह भी कहना ठीक है कि यह बड़ोर विद्याओं के बड़े २ विषय लोहे के चने हैं, हर किसी के दांतों फूटने के नहीं। तिस पर भी अकेला आदमी क्या २ लिखे ? अतः हम इस दंतकथा को केवल इतने उपदेश पर समाप्त करते हैं कि आज हमारे देश के दिन गिरे हुए हैं अतः हमें योग्य है कि जैसे बत्तिस दांतों के बीच जीभ रहती है वैसे रहें, और अपने देश की भलाई के लिए किसी के मागे दांतों में तिनका दबाने तक में लजित न हों, तथा यह भी ध्यान रखें कि हर दुनियादार की बातें विश्वास योग्य नहीं हैं । हाथी के दांत खाने के और होते हैं, दिखाने के और। वं० ५, सं० ९ (१५ अप्रैल १० सं० ५) धरतीमाता आजकल हमारे देश में गौ माता के गुण तथा उनकी रक्षा के उपाय एवं तजनित लाभ की चर्चा चारों ओर सुनाई देती है। यद्यपि दृष्ट प्रकृति के लोग उसमें बाधा करने से नहीं चूकते, और बहुत से कपटी रक्षक वन २ के भी भक्षक का काम करते हैं, अथवा कमर मजबूत बांध के तन मन धन से इस विषय का उद्योग करनेवाले भी श्री स्वामी आलाराम, श्रीमान् स्वामी और पंडित जगतनारायण के सिवा देख नहीं पड़ते । नामवरी का लालच, आपस की वैमनस्य, सार स्वार्थपरता या बेपरवाई इत्यादि कई अड़चनें बड़ी भारी हैं, पर लोगों के दिलों पर इस बात का बीज पड़ गया है तो निश्चय है कि कभी न कभी कुछ न कुछ हो ही रहेगा । पर खेद का विषय है कि हमारी बरती माता की ओर अभी हमारे राजा प्रजा किसी का भी ध्यान नहीं है। हम अपने दिहाती भाइयों को देखते हैं तो सदा स्वच्छ वायु में रहते और परिश्रम करते एवं अनेक