पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२१५

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मतवादी अवश्य नर्क जायंगे ] १९३ देखते हैं स्वतंत्रता की धुन ऐसी समाई है कि किसी को ईश्वर और धर्म का कुछ डर ही नहीं रहा । यद्यपि स्वतंत्रता गधे के सीगों के समान कहने ही मात्र को है,वास्तव में अस्तित्व इतना ही रखती है कि धाय धूप के मंहगा सस्ता, मोटा महीन खा पहिन लो और रात को सो रहो । इतने में बहुधा कोई प्रत्यक्ष बाधा न पड़ेगी। पर इतने ही पर लोगों के दिमाग इतने ऊचे चढ़ गए हैं कि मानो अब इन्हें कुछ करना ही नहीं है। कोई इनके ऊपर हई नहीं। कोई अभाव रहा ही नहीं। नहीं तो जिसके पुरखों की सहस्रों वर्ष की प्रगट एवं प्रच्छन्न पूंजी नाश हो गई हो और बची खुची भी सैकड़ों द्वार से दिन २ नष्ट हो रही हो उसे निश्चित हो बैठना चाहिये ? सौ काम छोड़ अपने उद्धार का मार्ग न ढूंढ़ना चाहिये ? पर क्या कीजिए यहाँ तो जो कोई सुधार की युक्ति बताता है वही सहायता पाने के स्थल पर नक्कू बनाया जाता है, उसी के विरुद्ध उद्योग किये जाते हैं अथवा स्वयं कहता कुछ है, करता कुछ है । इन्ही लक्षणों से हमें जान पड़ता है कि सब समय का फेर है जिसके मारे अवनति होती जाती है पर तुम लोग उष्पति समझते हो। नहीं तो जो सुख, सम्पत्ति, सुचाल हमारे देखे हुए काल में थी वह अब नहीं रही तो उन्नति कैसी। हां यह कहो कि परमेश्वर की बड़ी २ बाहें हैं, उन्हें सब सामर्थ है, वे चाहेंगे तो कभी दिन फेर देंगे पर आज तो सब कुछ देख सुन, सोच समझ के यही कहते बनता है कि समय का फेर है ॥ शुभमस्तु ॥ ___ खं० ५, सं० १०, ११ ( १९ मई, जून ह० सं०५) खंड ६, सं० ८, ९, १० (१५ मार्च, अप्रैल, मई ह० सं०६) मतवादी अवश्य नर्क जायंगे हमारी समझ में बड़ी २ पोषियां देखने और बड़े २ व्याख्यान सुनने पर भी आज तक न आया कि नर्क कहां है और कैसा है, पर जैसे तैसे हमने मान रक्खा है कि संसार में विघ्न करने वालों की दुर्गति का नाम नर्क है। मरने के पीछे भी यदि कही कुछ होता हो तो ऐसे लोग अवश्य कठिन दंड के भागी है जो स्वार्थ में अन्धे होके पराया दुख सुख, हानि लाभ, मान अपमान नहीं बिचारते । अगले लोगों ने कहा है कि 'बैद चितेरी जोतिषी हर निंदक मी कबि, इनका नर्क विशेष है, औरन का जब तब्बि' । पर इस बचन में हमें शंका है, काहे से बंद और चितेरे भादि में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग पाये जाते हैं फिर यह कही संभव है कि सबके सभी नर्क के पात्र हों। वह वैद्य नर्क जाते होंगे जो न रोग जानै न देश काल पात्र पहिचानें, केवल अपना पेट पालने को यह सिद्धांत किये बैठे हैं कि 'यस्य कस्य च पत्राणि येन केन समन्वितं । यस्मै कस्मै प्रदातव्यं यद्वा तदा भविष्यति' । पर वह पयों नर्क जायंगे जो समझ बूझ के औषधि