पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२४

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[प्रतापनारायण-ग्रंथावली ____२-वाह, नृत्य चौंसठ विद्या में से है, भगवान् श्री कृष्णचंद्र जी नाचते हैं, उसे बुरा कहते हो! १-फिर नाचो न ! मना कौन करता है ? अरे उन सबन महात्माओ को क्यों बदनाम करते हो ? हाँ, रासधारियों के ठाकुर जी को चाहो जो करो । भगवान् कृष्णचंद्र के और ही किसी काम का पक्ष करते । देवो महाभारत में उनके धर्मनिष्ठता, धीरता, वोरता और गंभीरतादि सद्गुणों को कैसी स्तुति है ! यदि हम एक भी उनकी चाल सीखते तो लोक परलोक में कैसा कुछ आनंद होता! २--यह पोथा फिर कभी खोलना-आज तो चलो परीजन ( वेश्या) की तानों से कानो और प्राणों को प्रमोदित करें। १-क्या लजा की मूरत अनुसुइया ( अत्रि ऋपि की पतिव्रता स्त्री ) की औतार घर की अप्सरा देवी के सीठनों ( ब्याह के गीतों) से तृप्ति नहीं हुई ? चलो, उसे कहोगे कि कुल परंपरा है, पर ऐसे २ गीत कि 'मिरजा परे सरग जा रे मैं तो नागर बाम्हनी' किम कुल की परंपरा है ? रासलीला वाले व्यभिचारोद्दीपक गीत, जिनमें मजे का मजा और ( हो न हो झूठ ही सही ) धर्म का भी चाट है, यही क्या कम थे जो महाअपावन म्लेक्षों के साथ पूजनीय ब्राह्मणियों के इश्क के गीत गाये जायें । हाय कलियुग देवता ! वेश्या तो गावें-'चलत प्राण काया कैसी रोई' और कुलांगनाएं वह गावें ? क्या ही काल की गति है ! २-यार, सच है, मैंने भी लाला कूड़ामल के लड़के के ब्याह में एक रंडी को 'हुए दफन जो कि हैं वे कफन उन्हें रोता अबे बहार है' गाते सुना था । १-फिर ले भला ! जब विवाह ऐसे मंगल कार्य मे मुर्दो के गीत होते हैं तो होली में किस मनभावन गान की आशा है ? २-हमने जान लिया कि नाच और गाने में तो तुम जा चुके पर चलो बाहर लोगों की हा हा हूंहू ही से जी बहलावें। १-यह शोर ही शोर तो रही गया है । देखो तो किसी काम के रहे नही हल जोतने तक का तो सलीका नहीं, तो भी 'हम बाला के सुकुल आहिन, हम ससुर धाकर के हियाँ तलाये का पानी लेबे ?' 'महाराज कुछ पढ़ते हो ?' 'का सुआ मैना आहिन ? हल तो आहिन जगतगुरू ! हमारे पुरिखन यज्ञ कीन ती !!!'बलिहारी-गैरे ! ( कनवजियों का प्रतिष्टा शब्द ) कि विद्या के नाम तो यह बात पर जो कोई कह दे कि--'अविद्यो ब्राह्मणः कथम्' तो जनेऊ तोड़ने को तैयार हैं। २-हम तो ढये उच्चकुल के क्षत्री ( खत्री) हैं ना ? १-ढये हो चाहै साढ़ेसाती हो, पर राजा साहब ! क्षत्रियत्व इसी में है कि अपने देश भाइयों की शारीरिक और मानसिक शत्रुओं से रक्षा करो । सो तो इन नाजुक हाथों से आसरा ही नहीं, हाँ, यह कहो कि हम मेहरे हैं, सो तो हम तुम सभी, क्योंकि सच्ची योग्यता के नाते तो ढोल. के भीतर पोल, पर मुंह से सब बड़ाई कूट २ के भरी है । २-बाह रे गुरू ! क्यों न हो, कोई कुछ कहै तुम अपनी ही राह पकड़ोगे । अच्छा ले आओ, तुम्हें बना तो दें ! और क्या. (मुंह रंग के ) आए ! ये आए होली के !