पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२४१

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स्वप्न ] २१९ तो एक दिन के साधारण भोवन भर को दे देना दोषास्पद नहीं है। पर उसके योग्य काम ले के तथा अपनी दया और उसकी बनावट जता के। इसी प्रकार सेंतमेंत में अथवा धोखा खा के यथासामर्थ्य किसी को कुछ न देना चाहिए । हाँ, जो निरा असमर्थ हो उसे इतना मात्र देना चाहिए जितने में उसकी जीवन रक्षा हो जाय । यों देने से दान पात्र को ऐसी युक्ति बता देना उत्तम है जिसमें वह अपना निर्वाह आप कर सके । बस, इससे अधिक दान पात्रों की व्याख्या व्यर्थ है। केवल इतना और स्मरण रखिये कि जिसने अपना प्राण बचाने में सचमुच उद्योग किया हो उसके लिए यदि सारा धन काम आवे तो दे देना उचित है, एवं जिसने मान, संभ्रम ( इनत ) बचाया हो उसके लिए धन और प्राण दोनों खो देना योग्य है तथा जिसने अपने साथ सच्चा स्नेह किया हो उस पर धम, प्रान और इखत सब वार देना महादान है । इन दिनों हिंदुओं के लिये भारत धर्म महामंडल और हिंदोस्थानी मात्र के लिये नेशनल कांग्रेस से बढ़ के दान पात्र कोई नहीं है जिन पर सारे देश का सुख सौभाग्य निर्भर है। यों सभाएं कई एक हैं पर वे यदि एक समुदाय का भला चाहती हैं तो दूसरियों के साथ स्पर्धा करती हैं। बरंच कभी २ परस्पर देष कलाती हैं अतः उनको सहायता केवल उन्हीं को योग्य है जो उनमें फंसे हुए हैं। पर यह दोनों उपर्युक्त समाजें वर्षों से सर्वसाधारण के लिये प्रयत्न कर रही हैं। इससे सब का परम धर्म है कि इन के ऊपर तन मन धन निछावर कर दें। जो हमारे दान विधान को मन लगा के समझेंगे एवं दूसरों को समझायेंगे तथा ब्राह्मण के वचन बर्ताव में लावेंगे वे वह फल पावैगे जिसका वर्णन वृथा है । कुछ दिन मे आप प्रत्यक्ष हो जायगा । खं० ६ सं० ३ ( १५ अक्टूबर ह• सं० ५) स्वप्न यह सपना में कहीं बिचारी । ह्व है सत्य गए दिन चारी ॥ . ज्यों ज्यों कांग्रेस के अधिवेशन का समय निकट आता जाता है त्यों त्यों देशभक्तों के हृदय में नामा भौति के विचार उत्पन्न होते रहते है। हमारे पाठकों को यह तो भली भांति बिदित ही है कि 'ब्राह्मण' का संपादक बल, बुद्धि, विद्या और धन के नाते केवल रामजी का नाम ही रखता है तिस पर भी प्रेमदेव की दया से प्रत्येक विषम में पाचवा सवार समझा जाता है। विशेषतः अपने मन से तो घुओं के धौरहर बनाने में कोई नहीं चूकता,फिर यही क्यों चुके ? अतः जहाँ बड़े २ लोगों को देशहित की बड़ी २