पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२४३

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स्वप्न ] २२१ धन लगा के अब तक कांग्रेस का काम चलाया है और यहां बालों से योचित सहारा नहीं पाया है बरंच बंबई वालों ने रुपये के लोभ से हमारे राम का जी कुढ़ाया है। पर क्या चिंता है-उद्योगिनम्पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः । बंबई की महासभा में जब इसका आन्दोलन होगा तो अवश्य कोई उत्तम राह निकल आवेगी। अपने सच्चे उपकार के लिये तीन सौ पैसठ दिन में चालिस सहस्र रुपया एकत्र होना कठिन चाहै हो, असंभव नहीं है। यदि एक बार बीस लक्ष मुद्रा एकत्रित हो जाय तो उनके ब्याज से सारे दुःख दरिद्र टल जायंगे । हर साल की हाव २ मिट जायगी । हम बीस कोटि भारतवासी यदि घेला २ इकट्ठा करेंगे तो २०००००० रुपया हो सकता है। बहुत से लोगों ने वर्ष भर तक एक रुपया प्रति मास देने का एवं अन्य लोगों को इसी निमित्त कटिबद्ध करने का प्रण कर लिया है। इसके अतिरिक्त अभी ग्रामों में एतद्विषयक चर्चा भली भांति नहीं फैली। यदि सौ पचास लोग अपने आसपास के ग्रामों में फिरने और उचित रीति से सर्वसाधारण को कांग्रेस की उत्तमता एवं आवश्यकता समझाने तथा उनसे सहायता लेने का उद्योग करें तो बहुत सहज में सब कुछ हो सकता है। उपाय में न चूकना चाहिए सिद्धि ईश्वर आप ही देगा-मनुष्य मंजूरी देत है कब राखेंगे राम । हमारे प्यारे ह्य म हतोत्साह क्यों होते हैं,धैर्य और साहस से क्या नहीं हो सकता ? जिस कांग्रेस के लिये हिंद और इंगलिस्थान के एक से एक विद्वान सज्जन छटपटा रहे हैं उसमें कभी त्रुटि होगी यह कैसे हो सकता है। इसी प्रकार के विचार करते २ एक आंख लग गई तो क्या देखते हैं कि दुपहर का समय है, सूर्यनारायण की प्रखर किरणें शीत के प्राबल्य को ललकार २ के साहस दिला रही हैं, पर उसे भागते हुए कवां खाता भी नहीं सूझता । ऐसे में हम और हमारे नगरनिवासी एक नवयुवक मित्र न जाने किस काम से निवृत्त हुए घर आ रहे हैं और सड़क पर एक ग्रामीण भाई वृक्ष के नीचे विश्राम ले रहे हैं। इनकी अवस्था चालीस वर्ष के लगभग है और अंबोआ की मिरजई, गुलाली से गहरी रंगो हुई मारकीन की धोती, शिर पर ढाई तीन आने गज वाली मलमल का मुरेठा, पास ही गठरी के ऊपर पिछोरी चढ़ी हुई मोटो लाल रंग की बनात और एक अधोतर के अंगोछे में बंधी हुई लुटिया डोर तथा पान को थैली देखने से स्पष्ट होता था कि किसी गांव के साधारण भलेमानस हैं। कई कोस की सफर किए आ रहे हैं इससे शरीर शिथिल हो रहा है, परों में धूल चढ़ रही है, अभी २ जूता उतार के बैठे हैं। पर मुख पर एक प्रकार का उत्साह दिखलाई दे रहा है जिससे जान पड़ता है कि अपने बिचार के आगे थकावट की कुछ चिंता नहीं करते। इस जमाने में इस वय के पुरुष में ऐसी हढ़ता देख के हमारा कौतुको चित्त इन महाशय से बातचीत किए बिना न माना अतः पास जा के वार्तालाप छेड़ा । वह बातें फिर सुनावेंगे। खं. ६, सं० ५ ( १५ दिसंबर ह० सं०५)