पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२६०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२३८ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली ५. भगवान भोलानाथ के बाहन मूषणादि का वर्णन पुरानी संख्याओं में लिखा जा चुका है और शैवसर्वस्व नामक पुस्तिका में पृथक् छप रहा है, इससे बार २ लिखने की आवश्यकता नहीं है । सूर्य और इंद्र के बाहन घोड़ा और हायी हैं। उन पर किसी को दोष देने का ठौर ही नहीं है फिर लिखें ही क्यों । दुर्गा जो के बाहन का तात्पर्य लिखी दिया गया । सरस्वती जी का वाहन हंस है जिसे सभी जानते हैं कि दूध का दूध पानी का पानी करने वाला है। चित्रों में पाठकों ने देखा होगा कि जिस हंस पर भगवती भारती देवी आरूढ़ होती हैं उसके मुंह मे मोती की माला रहती है। इसका भावार्थ वह लोग भलीभांति समझ सक्त हैं जो जानते हैं कि मधुर मनोहर कोमल बचन रचना को हमारे देश के लोग मुक्तमाल से सादृश्य देते हैं। बहुधा सभी लोग करते हैं कि फलाना बातें क्या करता है अथवा काव्य क्या रचता है मानों मोतो पिरोता है। इस कहावत से भी जिसने यह न सोचा कि सरस्वती जी के कृपा पात्र को क्षीर नीर विभेदक एवं मधुर कोमल कांत पदावली उच्चारक होना चाहिये उसे हम क्या समझायेंगे, ब्रह्मा जी तो समझा लें। ६. चन्द्रमा का बाहन मृग है। इस से एक तो ज्योतिष की यह बात सूचित होतो है उसकी गति अन्य सब ग्रहों से तीन है (मृग की चाल तेज होती है न )। जहां अन्य ग्रह अपनी चाल समाप्त करने मे ढाई वर्ष तक लगा देते हैं वहां यह सत्ताईस ही दिन में सारा राशि मंडल नाप डालते हैं। दूसरी बात यह निकलती है कि चन्द्रमा शब्द "चदि आह्लादे" के धातु से बना और आह्लाद के लिये मृग एक उपयोगी वस्तु है । रसिको के लिये मृगनैनी, विरक्तों के लिये मृगाकीर्ण बन, तपस्वियों के लिये मृगचर्म, संसारियों के लिये मृगशिरा की तपन ( मृगशिग के अधिक तपने से वृष्टि अच्छी होतो है और वृष्टि की अच्छाई से समस्त गृहस्थोपयोगी पदार्थ पुष्कल होते हैं ) तथा अनेक व्यापारियो और परिश्रमियों के लिये मार्गशीर्ष ( अगहन ) कसा सुखद होता है ! फिर जगत के विश्रामदाता औषधीश के साथ हमारे सहृदय शिरोमणि पूर्वज मृग का सम्बन्ध क्यों न वर्णन करते ? ७. लक्ष्मी देवी का बाहन उलूक है, अर्थात् जो लोग यही चाहते हैं कि सारा जगत अंधकारपूर्ण हो जाय तो अपना काम चले,जो लोग सब को मुमा २ ( अर्थात् सर्व सामथ्यं शून्य हो के मर मिटो ) पुकारते रहते हैं एवं दिन दहाड़े ( सबको जना के ) कुछ भी करना नहीं पसन्द करते, कोई लाख उल्लू कहे, अशुभ रूप समझे अथवा चोचे चलाया करे पर अपनी चाल में नहीं चूकते तथा अजरामरवत् जीवन समझ के धन संचय करने में लगे रहते हैं वही रुपया जोड़ सकते हैं । इन भगवती का नाम समुद्र कन्या है, जिसका तात्पर्य यह है कि जो लोग समुद्र में गमनागमन करते रहते हैं, देश देशांतर में आते जाते रहते हैं अथवा समुद्र की भांति चाहे लाख नदियों को पेट में डाल लें पर वृद्धि का चिन्ह भी न जतावें (घर भरने से तृप्त कभी न हो) चाहे रत्नाकर ( रत्नों को खान, जिसके घर में लाखों रत्न हों) ही क्यों न हो जायं पर दूसरे के लिये बूंद भर