पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३३

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कचहरी में शालिग्राम जी ] ११ सर्वसाधारण के जी में घृणा उत्पन्न करते हैं तो क्या इस विषय में ध्यान न देगी। फिर धार्मिक लोग तो लाखों रुपये लगा के छोटे-बड़े जीवों के रक्षार्थ अस्पताल और बाड़े बनवाते हैं। क्या तुमसे इतना भी नहीं हो सकता कि दो चार कुत्ते , जो मुहल्ले मे बिना धनी धीरो के फिरते हों, उन्हें एक ठौर बंधवा ही दो । निर्वाह उनका मुहल्ले वालों के एक २ टुकड़े से हो सकता है । हमें आशा है कि हमारे प्रिय पाठकगण इस लेख पर अवश्य ध्यान देंगे। हे ईश्वर दयानिधे ! (मे-मेरे) "यजमानस्यपशूनपाहि"-यजमानों के पशुओं की रक्षा कर । (यजुर्वेद का पहिला मंत्र)। हमारे इस कहने को कोई अत्युक्ति न समझे, शास्त्र चिल्लाता है-श्वानी द्वौ शामशवली वैवस्वतकुलोद्भवो । खं० १, मं० ३ ( १५ मई, मन् १८८३ ई.) कचहरी में शालिग्राम जी कलो दश सहस्राणि विष्णुस्तिष्ठति मेदिनी। तदद्ध जान्हवीतोयं तदद्ध" ग्रामदेवताः ।। १ ।। यह बात लड़कपन से सुनते हैं कि कलियुग मे दस सहस्र वर्ष विष्णु भगवान और पांच सहस्र वर्ष गंगाजी पृथ्वी पर रहेंगी। पर अभी तो पांच सहस्र वर्ष भी नहीं बीते, यह क्या हुआ कि कलकत्त मे शालिग्रामजी को अदालत देखनी पड़ी और कानपुर में गंगाजी ने अमृतद्रव नाम छोड़ के चर्मवाहिनी की उपाधि धारण कर ली । कैसे खेद का विषय है कि इन दोनों बातों के कारण विशेषतः हमी लोग हैं । कलकत्ते की हाईकोर्ट के एक मुकद्दमे में मुद्दई और मुद्दाअलह के वकीलों ने श्री शालिग्रामजी को एक मूर्ति को अदालत में लाए जाने के लिए मैरिस साहिब जन से निवेदन किया, जज साहिब ने अटर्नी लोगों से और गौरीकांत वर्मा नामक मुद्दई के कारिंदे से पूछा कि मूर्ति यहां आ मकती है ? उन्होंने कहा-'हां, चटाई पर नहीं परंतु बरामदे तक आ सकती है। बेनीमाधव मुतरजिन अदालत, जो एक उच्च जाति के ब्राह्मण हैं, उनकी भी इस बात में सम्मति हुई। वाह री समझ ! धन्य ब्राह्मण देवता ! भला जज साहब तो विदेशो और विधर्मी थे, यह तो शालिग्रामजी की प्रतिष्ठा से अज्ञात थे, तुम्हारी समझ में क्या पत्थर पड़े कि इतना न सूझा कि जिनको ब्राह्मण लोग भी बिना स्नान किये नहीं छूते, दूसरी जाति