पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रसिक समाज ] ३२९ फंकेगी पर उसी को कोई रोग हो जाय तो बैद्यराज वही बुलाए जायंगे जो दवा देते रहें, दोनों बखत भी जाया करे पर भेंट और दाम मांगने के समय काका बाबा इत्यादि शब्दों ही से संतुष्ट हो जायं! ऐसे हो ऐसे लक्षणों से घर भर के लोग हजार हजार हाथो का बस रखते हैं और शिर में पीड़ा होती है तो भो खैराती असपताल को दौड़ते हैं । पर यदि कोई दूसरा मनुष्य अपने रोग की कथा कहै तो भी झट सोंठ, मिर्च, पीपर बतला देंगे और अश्विनीकुमार की भांति आशीर्वाद दे देंगे कि-बस तीन दिन में माराम हो जायंगे। भला इस प्रकार के आचरण, बो अपना पराया दोनों का सत्यानाश करने में रामबाण हैं, जिन लोगों की नस-नस में भर रहे हों उन्हें कौन ब्रजमूर्ख न कहेगा? यदि यह अवमूर्ख न हों तो हम बीसौ विश्वा बज्रमूर्ख हैं जो ऐसों के लिए हाव २ करते हैं जिन्हें हमारी बातें ब्रवमूर्ख की बकवास का सा मजा भी नहीं देती! अथवा कौन जाने वह बलमूर्ख हो जिस ने हमें ऐसी सनक से मर दिया है ! खं० ८, सं० २-३ ( ३० सितंबर अक्तूबर, ह. सं०७) रसिक समाज भाषा की उन्नति के बिना देश की उन्नति सर्वथा असंभव है और हमारी भाषा हिंदी है तथा हिंदी इस बात में अन्य भाषाओं से अधिक श्रेष्ठ है कि एक ही रूप से गद्य और पद्य दोनों का काम नहीं चलाती कित गद्य के मैदान में अनवरुद्ध गति से तीक्ष्ण खड्ग की भौति और पद्य की रंगभूमि में मनोहारिणी चाल से नाटयकुशला संदरी की. नाई चलने की सामर्थ्य रखती है। इन उपर्युक्त बातों में किसी सहृदय विचारशील को संदेह नहीं है। यों शास्त्रार्थ के लिए कोई विषय उठा लेने और न्याय अथवा हठ का अवलंबन करके अपनी बृद्धिमत्ता दिखलाने के लिए सभी को अधिकार है। हमारे इस कथन से जो महाशय सहमति रखते हैं वे यह बात अवश्य ही मान लेंगे कि देश के सुधारने की पहिली सीढ़ी सर्वसाधारण के मध्य देश भाषा की रुचि उपजाना है और किसी समुदाय की रुचि सहज तथा उन्ही बातों में उपजा सकती है जिन्हें उस समूह का अधिकांश मनोविनोद के योग्य समझता हो। इस सिद्धांत को सामने रख कर विचार कीजिए तो विदित हो जायगा कि संगीत, साहित्य और सौंदर्य के सिवा और किसी वस्तु में मन को आकर्षण करके आनंदपूर्ण कर रखने की शक्ति नहीं है। परम-. योगी अथवा निरे पशु के अतिरिक्त सभी इन पदार्थों को स्वादुदायक समझते हैं। फिर यदि इन्ही के द्वारा भाषा के प्रचार की आशा की जाय तो क्या अनुचित होगा? किंतु सौंदर्य एवं संगीत से काम लेना वर्तमान समय में महा कठिन है। सुयोग्य अथक २१