पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३४७

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३२५ यह माना! इस तरह हारी मान के पूछो तो कुछ दिन में कुछ हो जाओ। लो सुनो, हमारे छ साहब गिनती वाले छ नहीं हैं ! वाह ! यह अच्छा उड़ान भरा! तो फिर बोतल, अंडे और बटन क्यों उपट डाले ? तुम्हारी मक्किल देखने को! और यों न सही तो ऐसा समझ लो कि मरदों की जबान और गाड़ी का पहिया फिरता ही रहता है। अब भी क्या वह जमाना है कि चाहे धरती लौट जाय पर बचन न पलटे । अब तो अकलमंदी इसी में समझी जाती है कि मन में कुछ हो, दूसरों को कुछ समझाया जाय और मौका मिलने पर अपने लिखे को साफ झुठला दे। फिर ऐसे कलजुग में पैदा हो के हम दुअर्थी बात निकाल बैठे तो क्या बुरा करते हैं ? नही महात्मा ! आप भला बुराई करेंगे! आप तो जो कुछ करें वही धर्म! बस २ ! अब तुम समझ गए ! जिसे खुशामद करना आता है वही इस जुग का समझदार है और उसी के सब काम बनते हैं, उसी से सब राजी रहते हैं। हम भी इतने खुश हुए हैं कि अब बिना बतलाए नहीं रह जाता। अच्छा तो सुनो, यह "," वास्तव मे संस्कृत पाले "क्षय" हैं और बंगाल के वानरजी तथा पंजाब के सिंहजी के मुख में जा के 'खय' अथवा 'खै' हो जाते हैं । पर हमारे यहां के छ या छा ( नाजुक तन औ नाजुक दिमाग ) पश्चिमोत्तरदेशी जी न हाथों परों से कुछ कर घर सकते हैं न मस्तिष्क से काम ले सकते हैं। केवल मजेदार मीठी २ बातें बनाना जानते हैं । उन्होंने देखा कि संस्कृत की क्ष बोलने में कठिन है मी बंग भाषा तथा पंचनदीय भाषा की 'ख'--'क्ष' उच्चारण में कर्कश है तथा कई शब्दों में और का और अर्थ सूचित करती है। इससे छ कहना ठीक होगा जो बोलने में सहज है एवं छैल छबीलियों का छाती लगने के समय छिन २ पर छड़कना याद दिलाता है । कुछ समझे ? हाँ इतना समझे कि आपकी बोली में छै' का अर्थ छः की संख्या और नाश होना दोनों है। आपने कहा था कि हम महीनो से छै २ सुन रहे हैं। इसका क्या मभिप्राय है? हैं ! यह मैंने कब कहा था ? भैया, यह अदालत नहीं है कि झूठ बोले बिना काम न चले । यहाँ तो हमी तुम हैं। फिर क्यों कह कहाय के इनकार करते हो? वाह ! अभ्यास बनाए रखना कुछ बुरी बार है ? हमने कभी नहीं कहा, खुदा कसम नही कहा! राम दुहाई मही कहा ! बाई गाड नहीं कहा ! और कहा भी हो तो बिना खुशामद कराए न बतावैगे! ____ अच्छा साहब! आप एक ही है ! आप बड़े वह है ! आप जो हैं सो हैं ! आप अपने आगे सानी नहीं रखते ! अब तो बतलाइएगा!