पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३५०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३२८ [प्रतापनारायण-ग्रंथावली त्योहार की चिंता से गृहपतियों के अनुयोग को छ! घर शोभायमान हो जाने से सुघर घरनियों की अप्रसन्नता की छ! खोल खिलोना मिठाई पा आने से बालकों के भिन्न २ करने को छ ! जुबारियों की भूख प्यास, सच्चाई-ईमानदारी, आपस के हेल मेल, बरस दिन के कमाय धन इत्यादि सबको छ छ छ ! ले इतने हमने गत का बतंगड़ बना के गिना दिए । एक बार तुम भी तो प्रेम से पूरित हो के गदगद स्वर से कह दो महारानी विक्टोरिया की जै! और हिंदी हिंदू हिंदुस्थान के द्वेषियों को छ ! छ!! छ !!! खं० ८, सं• ४-५ ( नवंबर-दिसंबर, ह. सं०७) पुलिस की निंदा क्यों की जाती है जबकि सरि ने यह मुहकमा प्रजा की शांति रक्षा के मानस से नियत किया है तो इसकी निंदा लोग क्यों किया करते हैं ? हम ऐसे बहुत ही थोड़े देखते हैं जिनकी जिह्वा चा लेखनी बहुधा पुलिस वालों की शिकायत न किया करती। यह क्यों ? तिस में भी सौ पचास की तनख्वाह पानेवाले ऊँचे अधिकारियों की शिकायत इतनी नहीं सुन पड़ती क्योंकि उन्हें निर्वाह योग्य वेतन मिलने से तथा प्रतिष्ठा भंग के भय से निंदनीय काम करने का अवसर थोड़ा मिलता है और यदि मिला भी तो साधारण लोग उनके डर से जब तक बहत ही खेद न पावें तब तक छोटी मोटी शिकायतें मुंह पर नहीं लाते । मन को मन ही में रहने देते हैं । किंतु पाँच सात दस रुपया महीना के चौकीदार कांसटेबिलों की शिकायत जब देखो तभी जिसके देखो उसीके मुंह पर रखी रहती है। इसका क्या कारण है ? क्या यह मनुष्य नहीं है ? क्या यह इतना नहीं जानते कि हम सर्वसाधारण में शांति रखने के लिए रखे गए हैं न कि सताने कुढ़ाने वा चिढ़ाने के लिए? यदि यह है तो फिर यह लोग क्यों ऐसा बर्ताव करने से नहीं बचे रहते जिसमे निंदा बात २ में धगे है ? संसार की रीति के अनुसार अच्छे और बुरे लोग सभी समुदायों में हुआ करते हैं तथा बहुत ही अच्छे बुरे लोग बहुत थोड़े होते हैं । इस नियम से पुलिस वालों में से भी जो कोई दुष्ट प्रकृति के बंश अपने अधिकार को बुरी रीति से व्यवहृत करके किसी के दुःख का हेतु हो उसको निंदा एवं उसके विरुद्ध आचरण रखनेवालों की स्तुति होनी चाहिए । पर ऐसा न होकर अनेकांश में यही देखा जाता है कि इस विभाग के साधारण कर्मचारियों में से प्रशंसा तो कदाचित् कभी किसी बिरले ही किसी के मुख से सुन पड़ती हो पर निंदा सुनना चाहिए तो जने जने से सुन लीजिए । इसका कारण जहाँ तक विचार कीजिए यही पाइएगा कि इन लोगों को वेतन बहुत ही थोड़ा मिलता है। दूसरी रीति से कुछ उपार्जन करने का समय मिलता ही नहीं है । प्रकाश्य रूप से सहारे की कोई सूरत नहीं रहती । इसीसे 'वुमुक्षितः किं न करोति पापम्' का उदाहरण बने रहते हैं। हिंदुस्तानी भले मानसों के यहां कहार चार रुपया पाते हैं पर कभी जूठा