पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३५३

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विश्वास ] ३३१ अंश में उनका विरोध अथवा उपेक्षा करेंगे उतनी ही वास्तविक हानि होगी ! इस में भी जो बातें आत्मा से संबंध रखती हैं यथा धर्म प्रेम ज्ञान वैराग्य ध्यान धारणा इत्यादि उनके विषय में तो हम सच्चे और उचित अहंकार के साथ कहेंगे कि दूसरों को उनका तत्व समझना ही कठिन है, अनुभव की तो बात ही जाने दीजिए। यदि ऐसा न होता तो आज कल का शिक्षित समुदाय विश्वास ऐसे दिध्य गुण से कदापि बंचित न रहता। विचार कर देखिए तो ऐहिक और पारलौकिक मनोरथो की सिद्धि विशेषतया इसी दैवीय शक्ति के आधीन है जिसे विश्वास कहते हैं। पर इस काल के विद्याभिमानी लोगों की इसकी शिक्षा नहीं प्राप्त हुई । विश्वास क्या है, किस में क्यों कर करना चाहिए और उस के करने से क्या होता है, यह बात कुछ हमारे ही पूर्व पुरुष समझ समझा सकते थे । और जिन लोगों के हृदय से इसका भाव पछाही हवा पूर्णरूपेण उड़ा नहीं ले गई, देश काल की दशा के अनुसार जिनकी मनोवृत्ति में अद्यापि थोड़ा बहुत आर्यल बना हुवा है, वे इसके अकथनीय स्यादु से नितांत अनभिज्ञ नहीं हैं । किंतु जिन के मन बचन और कर्म लड़कपन ही से अंगरेजी रंग ढंग का अभ्यास करते रहे हैं और होते २ आज उप अभ्यास ने जाति स्वभाव का रूप धारण कर लिया है के विश्वास को यदि जानते भी हैं तो इतना ही मात्र जानते हैं कि पुराने असभ्य अथव अशिक्षित लोगों में जहां और अनेक पागलपन की तरंगे थी वहां उन्हीं के अंतर्गत एक यह भी थी। पर ऐसा समझना हमारे बाबू साहब और साहव बहादुर की निरी नासमझी है, नहीं तो विश्वास वास्तव में यह गुण है कि यदि हम यथोचित रीति से उसे काम में लाच तो कही कभी कुछ भी हमारे लिए असाध्य न रह जाय । महात्मा मसीह ने अपने शिष्यों को एक बार उपदेश दिया था कि यदि तुम मे से किसी को अणुमात्र भी विश्वास हो और वह ( विश्वासी ) चाहे कि पर्वत इस ओर से उस और फिर जाय तो फिर जायगा। इसी मूल पर एक दिन एक पादरी साहब से एक मौलबी साहब ने प्रश्न किया कि आप को खुदा और हजरत ईस' और इंजील पर एतिकाद है या नहीं । अगर है तो इंजील की तहरीर के बमुजिब मिहरबानी कर के इस दरख्त ( सामने वाले वृक्ष ) को हटा दीजिए नहीं तो हम समझेंगे कि आप को अपने मजहब पर एतिकाद जर्रा भर भी नहीं है, यों ही दूसरों को नसीहत करते फिरते हो। इसके उत्तर में पादरी साहब ने उस समय यह कह कर पीछा छुड़ाया कि 'हम को विश्वास वेशक है, और बाइबिल में जो कुछ लिखा है वह भी सच है पर वह ताकत सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए थी जो हजरत ईसा के वक्त में जिंदा थे ।' हमारी समझ में पादरी साहब का यह कथन केवल उस समय का झगड़ा बरका देने के लिए था, नहीं तो ईश्वरीय सामय में कभी निबलता नहीं हो सकती। ईश्वर जो ईसा के समय में या वही आज भी बना हुआ है । वह अपने विश्वासियों की मनःकामना पूर्ण करने के लिए सदा सर्वथा सब ठौर प्रस्तुत रहता है। अतः उचित एवं सत्य उत्तर यही था कि महात्मा मसीह ने जो कुछ कहा वह बेशक सच है पर ऐसा सच्चा और दृढ़ विश्वासी होना हर एक का काम नहीं है। हम ईश्वर के कमजोर और दुनियादार बन्दे हैं। हम में पर्वत हटाने