पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३६१

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भेड़ियाधसान ] मिले। महात्मा चाणक्य आदि के सिंहादेकं वकादेकं शिक्षिचवारि कुक्कुटात्' इत्यादि वाक्य इसी आशय पर बने हैं और इसी मूल पर हमें भेड़ों से यह बात सीखनी चाहिए कि अपने निज मणायं अर्थात् समुदाय के श्रेष्ठ पुरुषों की आज्ञानुसार अपने सजातीय अग्रगंताओं का चुपचाप आंखें मूंदे अनुगमन करने में कोई भय नहीं है। नीति में 'मार्गस्यो नावसीदति' और 'महाजनो येन गतः स पंथा' इत्यादि आज्ञाएं भी इसी प्रयोजन को दिखलाती हैं फिर हम नहीं जानते लोग भेड़ियाधसान वाली कहावत को बुरे बर्ताव में क्यों लाते हैं ? आंखें फैला के देखिए तो कभी किसी देश वा जाति में सब के सभी लोग असाधारण बुद्धि बल संपन्न नहीं होते फिर साधारण जनसमूह भेड़िया- धसान के अतिरिक्त और क्या कर सकता है ? अथवा यों कहना उचित है कि भेड़ चाल ग्रहण किए बिना साधारण लोगों का निर्वाह कैसे हो सकता है ? फिर उस के पक्ष में इस शब्द को उपहास की भांति व्यवहृत करना क्यों कर युक्तियुक्त हो सकता है ? नई रोशनी के आरम्भ में यह धूम मचा था और आज तक शांत नहीं हुई कि हिंदुस्तान में भेड़ियाधसान है, यहां के लोग पुरानी लकीर पर फकीर हैं, कैसा ही कष्ट और हानि हो पर पुराने ढरे को छोड़ना नहीं चाहते ! देश का दुर्भाग्य है कि इस प्रकार के आक्षेपों ने बहुतेरों के चित्त पर प्रभाव कर लिया नहीं तो हमारा पुराना रास्ता जिस पर हमारे पिता पितामहादि चलते आए हैं किसी भांति बुरा न था न है न हो सकता है, क्योंकि उस के बतलाने वाले हमारे महर्षिगण थे जिन की विद्या बुद्धि लोक- हितैषिता बहुदशिता सूक्ष्मदशिता दूरदर्शिता अद्यापि निष्पक्ष विचारशील मनुष्य मात्र को श्रद्धा का आधार है। उन्होंने अपने समस्त जीवन के महत्परिश्रम जनित अनुभव के द्वारा हमारे लिए जो पंथ नियत किया है उस का यदि हम दृढ़तापूर्वक अवलंबन करें तो केवल हमारा ही लोक परलोक न बने बरंच हमारा अनुकरण करने वालों का भी सचमुच भला हो । हां यदि देश काल की गति हमें पूर्ण रूप से उनका आज्ञानुवर्ती होने में बाधा डाले तो भी यथासामर्थ्य सरलभाव से उन्हीं के निर्दिष्ट मार्ग पर चलना उचित है और इसी में हमारा वास्तविक कल्याण है । भगवान कृष्णचंद्र की आज्ञा भी यही है कि 'स्वधर्म निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः' । अतः हमें अपने पूर्वजों की चाल पर हठपूर्वक प्रण कर के चलना चाहिए। इस में यदि कोई हंसो की रीति पर भेंड समझे तो हमें चाहिए कि उसे सच्चे जी से गधा समझें। जब कि सभी देश के समझदार अपने पथप्रदर्शकों को अपना गणार्य मानते हैं, मसीहो धर्मग्रंथ में कई ठौर महात्मा मसीह को गड़रिया Shepherd बरंच वात्सल्य भाव ईश्वर का वर्णन Lamb of God लिखा है । शेखसादी ने बोस्तां में महात्मा मुहम्मद की इसी पदवी से स्तुति की है । तो • "दरी बह र जुज मर्दै दाईन रफ्ता गुम आशुद किं दुम्बा ले राईन रफता।" अर्थात् इस (धर्म व लोक के ) समुद्र में अधिकारी के अतिरिक्त और किसी को गमन करने की शक्ति नहीं है तथा जो चरवाह ( मुहम्मद साहब ) का अनुगमन नहीं करता वह नष्ट हो जाता है।