पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३६२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३४० [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली फिर यदि हम अपने मार्ग दर्शकों को अपना मजावि पालक और अपने सीधे सादे निष्क- पट पूर्व पुरुषों को अग्रगामी समझ के अपनी छोटी और मोटी समझ का घमंड छोड़ के केवल उन्ही के पीछे भोली भाली भेड़ों के समान चले जायं तो क्या बुराई करते हैं ? दूसरों को हंसने में कुछ लगता नहीं है। न्याय दृष्टि से देखिए तो भेड़ चाल से बचा कोई भी नहीं है। हम अपने अवतारों और देवता पितरों की मूर्तियों तथा चिह्नों का आदर करते हैं तो दूसरे लोग भी अपने प्रिय और प्रतिष्ठित पुरुषों के चित्र तथा प्रति- माओं को लातों नहीं मारते । हम अपने बालक बालिकाओं के विवाहादि में होन्मत्त हो जाते हैं तो दूसरे लोग भी ऐसे आनंद के अवसर पर सिर पीट कर रोते नहीं है । हम नामवरी तथा धर्म की उमङ्ग में अपने सजातियों और स्वदेशियों पर अपना रुपया लुटा देते हैं तो दूसरे लोग भी ऐसी तरंग में अपने भाइयों के कपड़े लत्ते छीन नहीं लेते। हम रोजगार व्यवहार में अधिक प्राप्ति के लिए झूठ और छल करते हैं तो दूसरे लोग भी मुंह में तुलसी और सोना डाल के कलों और कारखानों का काम नहीं करते । हम अपने से नीच जाति व प्रतिष्ठा वालों के साथ रोटी बेटी का व्यवहार नहीं रखते तो दूसरे लोग भी जिन्हें अपने से तुच्छ समझते हैं उन के साथ खाना पीना तथा ब्याह शादी करना गौरव के विरुद्ध ही समझते हैं । फिर क्यों हम में भेड़ियाधसान है और दूसरों में सिंह गमन है ? और हो भी तो अपनी चाल छोड़ देना कोई बुद्धमानी तथा प्रतिष्ठा नहीं है। जो लोग विदेशीय रीति नीति के पक्षी और भक्ष्याभक्ष्य भक्षी बन बैठे हैं उन्ही ने कौन सी करतूत कर दिखाई है ? क्या सनातन धर्म छोड़ देने से ईश्वर ने उन्हें गोद में उठा लिया है ? या कोट पतलून पहिनने से अंग्रेजों ने उन्हें अपने बराबर बना लिया है ? फिर किस बात में वह शेर हो गए और हम भेड़ हैं ? और हो भी जाय तो क्या है हमारी मेंह चाल से यदि और कुछ न हो तो भी टूटा फूटा बना बिगड़ा हिंदुस्तानीपना बना हुआ है यही क्या थोड़ा है। उनकी बनगली चुस्त मनमौजी चाल, निरंकुश चाल, बिमा नकेल की ऊंट की चाल परमेश्वर न करे यदि पूरी रीति से चल जाय तो हिन्दी हिन्द और हिन्द का नाम निशान भी न रहे और जिन बातों में वे सुधार होना समझते हैं उन में जातित्व एवं देशित्व का खोना वरंव अपने ग्न के लिए शिर पर हाथ धर के रोना दृष्टि पड़े । अस्मात हमें चाहिए कि यदि कोई हमारी निज की प्राचीन चाल को भेड़ चाल कहे तो हम उस की विदेश विधर्म और विजाति वालो से उड़ाई चुराई और नकली चाल को भांड चाल कहें! हां यदि कोई इस बात का पत्र और प्रत्यक्ष प्रमाण दे सके कि अपनी चाल छोड़ देने से काल कर्म भाग्य और भगवान की गति सदा के लिए तुम्हारी बशतिनी हो जायगी अथवा बुद्धि विद्या बल और योग्यता के बिना सदा सब ठौर के सब लोग सम्मान करने लगेंगे तो एक बात भी है। नोचे किसी मूर्ख की देखा देखी वा किसी चालबाज के कहने सुनने से अपनी चाल को भेड़ चाल समझना निरी नासमझी है । जो लोग डाक्टरी दवा नहीं खाते वे बुखार आते ही मर नहीं जाते बरंच पोड़े दामों में चिरस्थायी नरुज्य लाभ कर सकते हैं। जो लोग होटल यात्रा नहीं करते वे भूखों नहीं मरते बरंच खीर पूरी मोहनभोग का भोग लगा सकते है और वों