पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३६५

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बाल्पविवाह ] ३४३ कभी २ गड़बड़ कर उठाते हैं और देशी परदेशी विपक्षीगण के आक्षेपभाजन बनते हैं। यद्यपि हमारे पूर्वजों की दया से अद्यापि हमें यह अधिकार है कि यदि कोई सम्राट आशा करे कि अमुक स्थान पर अमुक समय अमुकामुक वाले इतने पुरुष एकत्र हों और अमुक कार्य सम्पादन करें तो उस आदेश में चाहे हानि के स्थान पर लाभ और कष्ट के ठौर पर आनन्द ही क्यों न हो पर सब लोग प्रसन्नतापूर्वक कदापि अंगीकार न करेंगे। बरंच “जबरदस्त का ठेंगा सिर पर" समझ कर यथासम्भव बचने का उद्योग करेंगे वा अनमनेपने से आज्ञा पालन में प्रवृत्त होगे । किन्तु यदि हम यह दें कि अमुक दिन अमुक समय अमुक स्थल पर लोगों को इकट्ठा होना चाहिए तथा यह देना और श्रम करना चाहिए तो देख लीजिए सो को जगह हजारों बरंच लाखों लोग आते हैं कि नहीं और काल में भी एक २ पल का ध्यान रखते हैं कि नहीं तथा दान में जी खोल के एक के ठौर देते हैं कि नहीं ? किन्तु इस युग में अपना इस प्रकार का महत्व हम तभी रक्षित रख सकेंगे जब यत्नपूर्वक आलस्य एवं उपेक्षा को छोड़ के अपने पूर्व पुरुषों के वचनों की उत्तमता अथच प्रयोजनीयता सर्वसाधारण में फैलाते रहें। हम इसी मानस से ऐसे प्रस्ताव प्रकाश करते रहना योग्य समझते हैं। यदि हमारे पंडितगण इस विषय में हमारा साथ देते रहे तो बड़ा उपकार होगा। इस शतक मे कुछ भी संख्या का नियम नहीं है शत और सहस्र शब्द असंख्य के बाची हैं अस्मात् जितने अधिक निर्णीत विषय लिखे जा सके उतना ही अच्छा है। नहीं सौ के लगभग तो हम सोच रक्खे हैं उन्हें धीरे २ लिखते रहने का विचार है ही आगे हरि इच्छा अथवा विद्वान मित्रों की इच्छा। जो इस प्रकार के निर्णय लिखते रहेगे उन को हम कृतज्ञता समेत उन्ही के नाम से प्रकाश करेंगे तथा जो सहृदय हम से यह कहते रहेगे कि अब इस विषय का निर्णय लिखो-उन की आज्ञा भी हम धन्यवाद सहित पालन करेंगे और यह भी लिखा करेंगे कि-यह निर्णय अमुक महाशय की रुचि से लिखा है क्योंकि ऐसी बातों की देश के लिए आवश्यकता है और ब्राह्मण नाम की शोभा है। इस से हमारे पाठकों को इस शीर्षक के लेख ध्यान दे के देखते रहना और हमारा हाथ बंटाते तथा हमें स्मरण दिलाते रहना चाहिए । खं० ८, सं० ७ ( फरवरी, ह० सं० ८) बाल्यविवाह वस्तुतः बुरा नहीं है। जो लोग कहते हैं कि वर कन्या की इच्छा से होना चाहिए उन्हें यह भी समझना उचित है कि पच्चीस वर्ष का पुरुष और सोलह वर्ष को स्त्री विद्या तथा बुद्धि चाहे जितनी रखती हो पर सांसारिक अनुभव में पूर्ण दक्षता नहीं प्राप्त कर सकती। वुह जगत की गति देखते ही देखते आती है और उन दोनों के माता पिता कैसे ही क्यों न हों पर अनुभवशीलता में उन से अधिक ही होते हैं क्योंकि उन्होंने