पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३८१

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भगवत्कृपा ] ३५७ यदि उन्हें बहुत दिन की बातें होने से कवियों की अत्युक्ति मानिए तो भी बहुत से ऐसे इतिहास विद्यमान हैं जिन के देखने वाले न मर गए हैं, न झूठे हैं, न कपट कथा सुना के आप से कुछ लेने की पर्वा रखते हैं। शव मनोरंजनी नाम्नी पुस्तिका के लिखने बाले श्री देवीसहाय बाजपेयी जी का वृत्तांत कानपुर और काशी के सहस्रों लोग जानते हैं कि कई वर्ष तक अंधे रहे थे और अंत में किसी औषधि का व्यवहार किए बिना आंखें खुल गई थी। उनके साथ नित्य साक्षात् करने वाले एक नहीं, दो नही, सकड़ों प्रतिष्ठित और सुशिक्षित लोग विद्यमान हैं । उन से पूछ के जिस का जी चाहे अपना जी भर ले । चौथी एप्रिल के 'बंगवासी' ने खजुहा, जिला फतेहपुर निवासिनी बतासा नाम की पूजनीया ब्राह्मणी का जो चरित्र लिखा है कि उन के पांव सूख जाने के कारण हिलने चलने की शक्ति से रहित हो गए थे और फिर ३.कस्मात क्षण ही भर में पूर्णरीत्या नीरोग हो गए। इस की साक्षी के लिये आसाम देशान्तर्गत श्रीहट्ट प्रांत के एसिस्टेन्ट इंजीनियर श्री मात दीन जी शुक्ल एम० ए० तो हई हैं जिनकी सजनता से हम और हमारे कई मित्र भली भांति परिचित हैं, किंतु इतने पर भी किसी को विश्वास न आवै सो हम पूर्ण रीति से निश्चय करा देने के प्रस्तुत हैं। क्योंकि खजुहा कानपुर से बहुत दूर नहीं हैं न उन सीधी सादी भोली भाली ब्राह्मणी को असली हाल बतला देने में कोई इनकार है । और सुनिए बांदा नामक मगर में एक बाबू प्रसाद साहब वकील हैं, साधुओं के आगत स्वागत में बड़ी रुचि है, अभी थोड़े दिन की बात है कि कुछ एक महात्मा आ गए पर उनकी सेवा के ये ग्य वकील साहब के पास धन न था अतः उन्होने घर का गहना गहने धर उस समय काम तो निकाल लिया किंतु द्रव्य संकोच के कारण विशेषतः स्त्रियों को खिन्न देख कर, क्लेश भी हुवा पर पांच सात दिन में जब महाजन के यहाँ से आभूषण लोटा लेने को गए तो उस ने कहा, 'वाह साहब यह क्या बात है ? गहना तो आप उसी दिन ले गए थे और रुपया भी आप हो के हाथों पिल चुका है।' इस पर घर में आकर पूछा तो महाजन की बात ठीक निकली। जिसे इस आख्यान में भी संदेह हो वह उक्त स्थान पर जा के निवारण कर सकता है । एक प्रतिष्ठित वकील को इस रीति के मिथ्या समाचार प्रचार करके अपनी महिमा बढ़ाना आवश्यक नहीं है। इस प्रकार के सैकड़ों सत्य समाचार हैं जो केवल आप के मिथ्या कहने से मिथ्या न हो जायंगे और कोई मिथ्यापन का प्रमाण आप नहीं दे सकते और हम सत्यता के लिये सैकड़ों शाक्षी दे देंगे। फिर भी यदि शास्त्रार्थ का साहस कीजिए तो जब तक आप यह न सिद्ध कर दें कि ईश्वर सर्वशक्तिमान नहीं है, सच्चे विश्वास में प्रभाव नहीं है अथवा ईश्वर के आराधना में प्रत्यक्ष कोई फल नहीं है तब तक यदि न्याय कोई पदार्थ है तो आप का कथन अप्रमाण रहेगा और भगवत् कृपा के अनुभवियों के पास प्रत्यक्ष प्रमाण बना रहेगा। हाँ यदि आप कहें कि ऐसा कोई दिखा क्यों नहीं सकता तो हम कहेंगे, ईश्वर और उसके भक्तजन बाजीगर नहीं हैं कि भाप की इच्छा होते ही तमाशा दिखा दिया करें। वह ईश्वर का और उसके भक्तों का निज व्यबहार है जिस के देखने की सामर्थ्य विवादियों को नहीं हो सकती। हो सके तो तर्क