पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३९३

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ईश्वर की मूर्ति ] लुटा दें। यहां हम बाइबिल और कुरान में लिखे ईश्वर के अंगों का वर्णन नहीं करते, क्योंकि एक तो उन में केवल दो एक अंगों को छोड़ के औरों का नाम भी नहीं है। दूसरे जहां पर लिखा है कि ईश्वर ने आदम को अपने स्वरूप में बनाया वहां यदि "अपने" शब्द का अर्थ आदम को ओर न लगा के ईश्वर की ही ओर लगाए तो भी कोई हानि नहीं है क्योंकि आदम की सूरत सिर से पैर तक किसी भांति अपूर्ण व अन- मेल न थी। तीसरे हमारे मुहम्मदीय और मसीही भाई इन दिनों इस विषय में हम से छेड़ के विवाद नहीं लेते अतः हमें तो उन से झगड़ना अनुचित है। पर हमारे दयानंदी हिन्दू भाई इस बात का बाना बांधे फिरते हैं। इस से हमें उन के यहां की मूर्तियां देखनी हैं। यदि च वे अपने स्वामीजी के चित्र का अनादर नहीं सह सकते जिसका मूल्य छ: पैसे और अधिक से अधिक दो रुपया है, तथा सुन्दरता भी ऐसी नहीं है जैसी हमारे रामकृष्णादि की तसवीरों में होती है, स्मरण भी उस के द्वारा केवल एक काठियावारी विद्वान् मात्र का होता है, और बस, किन्तु हमारी स्वर्ण रजत होरकादि की देव प्रतिमा पोप लीला है, उन का अनादर कोई बात नहीं, पर स्वामी जी का फोटो बड़े खूबसूरत चौकठे में बड़ी इनत के साथ रखना चाहिए । यों ही जहां वेदों में अक्षरार्थ के द्वार। कोई शंका उठावें तो छुटते ही यह उत्तर होगा कि उस रिचा का गूढार्थ और है अथवा अलंकारिक वर्णन है किन्तु पुराणों में जहां सहज में समझने योग्य विषय न हों वह । गूढार्थ वा अलंकारिक अर्थ कुछ नहीं है, केवल गप्पम्बर्तते । और इस पर तुर्रा यह है कि किसी ऐसी ही समझ पर देशहित और ऐक्य प्रचार का भी दावा है । हम पूछते हैं कि हठ का अवलंबन न कर के कभी कोई भी देश वा जाति में एका फैला सका है कि आप हो अनोखे बन के माए हैं ? हमें श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती को प्रतिकृति अथवा वेब भगवान से बैर नहीं है पर साथ ही यह भी जिद्द नहीं है कि इन के सिवा और सब बुद्धिविरुद्ध हैं। नहीं, अपने पूर्वपुरुषों के साधारण चिह्न का भी हमें ममत्व स्वभावतः होना चाहिए यदि हम उनके सन्तान हैं। फिर प्रतिमा और पुराण तो उनके वर्षों के परिश्रम के फल हैं, उन का उपहास कर के हम जगत एवं जगदीश्वर को क्या मुंह दिखावेंगे ? और यों तो कुतर्क के लिए सभी राहें खुली हैं। प्रतिमा और पुराण का क्या कहना है,ईश्वर और वेद पर भी आक्षेप हो सकता है । और केवल मुंह के आस्तिकों को उसका उत्तर सूझना कठिन पड़ेगा। न मानिए तो सुन लीजिए,पर उन्ही कानों से जिनसे आप हमें पुराणों की गड़बड़ाध्यायो सुनाया चाहते हैं । शब्दार्थ और अक्षरार्थ से अलग कोई बात कहिएगा तो हम पुराणों के मंडन में धर धमकेंगे। यह भी स्मरण रखिए कि अलंकार का नाम न लीजिएगा नहीं तो स्वामी जी के भाष्य में केवल चार ही पांच मिलेंगे, जिनके द्वारा वेद भगवान की सीधी सादी लेख प्रणाली में बनावट झलकने लगेगी। किंतु हम एक सौ आठ नाम और लक्षण ले बैठेगे जिनका वेदों में पता भी म लगेगा किंतु पुराणों में अध्याय के अध्याय मिलेंगे । और उस दशा में आप तर्कशास्त्र का मर. लंबन कर के न बच सकिएगा,केवल काव्यशास्त्र का आश्रय लेना पड़ेगा,जो आपके यहां यदि