पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४१

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देशोन्नति ] भाइयों के साथ बोलने में अपने को शेखसादी अथवा शेक्सपियर का नाती जाहिर करेंगे स्वभाव जैसा बीस बरस पहिले था वैसा ही अद्यापि वर्तमान है। गांजा भांग का प्रण संध्योपासन से अधिक निबाहेंगे, लावनीबाजों के फटके पर बड़े प्रेम से हंस २ के खड़े २ धक्का खाते हुए घंटों सुना करेंगे, अपनी हिस्ट्रीदानी दिखावंगे तो ऐसी कविता करेंगे (रूसी हैं भुच्च जिनकी सवा २ हाथ को मुच्छ) । संपेड़े के नाच में रात भर खड़े रहेंगे, शतरा में दो दो पहर गंवा देंगे, दिवाली मे आठ २ दिन कर्ज काढ के सोरही में आठों पहर मगन रहेंगे, होली में मित्रों पर एक पैसे का रंग छिड़कने के समय सभ्यता की आड़ में जा छिपेगे, पर दिन को कबीरों और रात को भांड़ों की महफिल में बैठे हैं, हा हा हा हो हो हो करने में बीर बन जायेंगे । आप दूसरों को बेवकूफ, बेईमान, पोप बनावैगे पर दूसरा कुछ कहे तो अपने टटेर ऐसे हाथ पावों को ओर न देखकर लड़ने को तैयार हो जायेंगे। किसी को कोई वस्तु मांग लावैगे तो हजम कर रक्खगे या बरसों में अस्त-व्यस्त करके सत्रह कोने का मह बना कर फेरेंगे। अपनी चीज मांगने पर, जिसे परम मित्र कहेंगे उससे भी, झूठे बे सिर पर के सौ बहाने गढ़ेगे । कहां तक कहै, जितनी सत्यानाशी बातें हैं सब करेंगे पर देशोन्नति देशोन्नति चिल्लाते फिरेंगे। इन पांचवें सवारों से कोई पूछे कि कुछ अपनी उन्नति भी की है कि देशोन्नति ही पर मरे जाते हो? ___ लोग किसी समाचार पत्र अथवा किसी समाज के सम्बन्धियों को उन्नतिकारकों की नाक समझते हैं, और हैं भी यों ही, क्योंकि ऐसों को इस बात का अधिक पक्ष होता है । सच पूछो तो इनकी शोभा, इनका मुख्य कर्तव्य, इनका परम धर्म ही यही है । पर किया क्या जाय, कुत्ते को पूंछ सीधी तो होगी नहीं। ऐसे लोग बकबक छोड़. के करेंगे क्या ? पत्र सम्पादक वा पत्र प्रेरक होंगे तो किसी नीच प्रकृति अमीर की खुशामद के मारे सबके बैरी बनेंगे, वा किसी पुरुष पर दुलत्तियां झाड़ेंगे । यह भी न करेंगे तो किसी सहयोगी रंडहाव पुतरहाव नांध लेंगे । ग्राहक होंगे तो पत्र लेते रहेगे, दाम देने के समय पेट पर हाथ फेर के 'आतापी भक्षितो येन वातापी च महाबलः' पढ़के बैठे रहेंने । कोई जल भुन के नादिहंद लिख बैठेगा तो प्रभु प्रान लगेंगे। समाजों के म्यम्बर होंगे तो या तो दूसरी सभावालों के गुण में भी दोष लगावेंगे या अहंकार के मारे अधिकारी बनने को धुन में आके अपने ही यहां बालों का चित्त फाड़ेंगे । भला ऐसों के लिए देशोन्नति होनी है ? कभी नही, कदापि नही, त्रिकाल में नहीं। देशोन्नति के लिए और ही सिद्ध मन्त्र हैं, वह और ही दिव्योषधी है। ___ इसका एक मात्र परम साधन क्या है ? इस विषय में आजकल 'ज मुंह से बातें' हो रही हैं । कोई कहता है धर्म २ चिल्लाये जाओ, देशोन्नति हो जायगी। कोई समझे हैं धन के बिना देशोन्नति कैसी ? विलायत यात्रा, यंत्र निर्माण, महत्कार्यालय स्थापन करनादि के बिना क्या होना है। किसी का सिद्धांत है कि बल के बिना देशोन्नति असंभव है । बाल्य विवाह उठे बिना विधवा विवाह हुए बिना त्रिकाल में कुछ नहीं होना। किसी का मत है 'विद्या विहीनः पशुः' । दूर देश जाके विद्या पढ़ी, बड़ी २