पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४३१

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आप ले भला बतलाइए तो आप क्या हैं ? आप कहते होगे, वाह आप तो आप ही हैं । यह कहां की आपदा आई ? यह भी कोई पूछने का ढंग है ? पूछा होता कि आप कौन हैं बतो तला देते कि हम आप के पत्र के पाठक हैं और आप 'ब्राह्मण'- संपादक हैं अथवा आप पंडितजी हैं, आप राजा जी हैं, आप सेठ जी हैं, आप लाला जी हैं, आप बाबू साहब हैं, आप मियां साहब, आप निरे साहब हैं । आप क्या है? यह तो प्रश्न की कोई रीति ही नहीं है। वाचक महाशय ! यह हम भी जानते हैं कि आप आप ही हैं, और हम भी वही हैं, तथा इन साहबो की भी लंबी धोती, चमकीली पोशाक, खुटिहई अंगरखी ( मीरजई ), सीधी माग, बिलायती चाल, लम्बी दादी और साहबानी हवप्त है रहे देती है--कि "किस रोग की हैं आप दवा कुछ न पूछिए" अच्छा साहब, फिर हमने पूछा तो क्यो पूछा? इसी लिए कि देखें कि आप "आप" का ज्ञान रखते हैं या नहीं? जिस आर को आप अपने लिए तथा औरो के प्रति दिन रात मुंह पर धरे रहते हैं, वह आप क्या हैं ? इसके उत्तर मे आप कहिएगा कि एक सर्वनाम है। जैसे मैं, तू, हम, तुम, वह यह आदि हैं वैसे ही आप भी हैं, और क्या है। पर इतना कह देने से न हमी सतृष्ट होगे न आप ही के शब्दशास्त्र ज्ञान का परिचय होगा। इससे अच्छे प्रकार कहिए कि जसे 'मै' का शब्द अपनी नम्रता दिखलाने के लिए बिल्ली की बोली का अनुकरण है, 'तू' का शब्द मध्यम पुरुष की तुच्छता वा प्रीत सूचित करने के अर्थ कुत्ते के सम्बोधन की नकल है; हम तुम संस्कृत के अहं, त्वं का अपभ्रंश हैं, यह वह निकट और दूर की वस्तु वा व्यक्ति के द्योतनार्थ स्वाभाविक उच्चारण हैं, वैसे 'आप' क्या है ? विस भाषा के किस शब्द का शुद्ध बा अशुद्ध रूप है, और आदर हो मे बहुधा क्यो प्रयुक्त होता है ? हुजूर की मुलाजमत से अक्ल ने इस्तेअफा दे दिया हो तो दूसरी बात है नही तो आप यह कभी न कह सकेगे कि "आप लफ्ज फारसी या अरबीस्त" अथवा "भोः इटिज ऐन इंगलिश वर्ड'। जब यह नहीं है तो खाम्लाह यह हिन्दी शब्द है, पर कुछ सिर-पर मुड़-गोड़ भी है कि यों ही ? आप छूटते ही सोच सकते हैं कि संस्कृत में आप कहते हैं जल को। और शास्त्रो मे लिखा है कि विधाता ने सृष्टि के आदि मे उसी को बनाया था, यथा-"आप एव ससर्जादौ तासु वीर्यमवासृजत्' तथा हिंदी मे पानी और फारसी में माब का अर्थ शोमा अथच प्रतिष्ठा आदि हुआ करता है । जैसे "पानी उतरि गा तरवारिन को उई करछुलि के मोल बिकायं" तथा "पानी उतरिगा रजपूती का