पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४५३

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नवपंथी और सनातनाचारी ] ४२९ मुठा गर्व करके महा पापी बनते हैं और दूसरे लोग यदि हमें जी से ऐसा मानें तो धोखा खाते हैं सा केवल मुख से इस शब्द का प्रयोग करें तो हमें झूठमूठ झंडे पर चढ़ाते हैं। पर यतः साधारण समुदाय के अधिकांश ने इस शब्द को साधारण बोलचाल में साधारण ही अर्थ का घोतक मान लिया है और शब्द भी अपने देश का है इस से आप चाहे जिस के लिये प्रयोग कर लें, पर नमस्ते क्वा बला है ? बाबा ! नमस्ते तुम हागे हम नहीं हैं। नव०-वाह साहब ! नमस्ते भी कोई गाली है ? सन-गाली उन्ही शब्दों को कहते हैं जिन्हे सुन के श्रोता का चित्त बिगड़ जाय। और यह लक्षण इस शब्द में भी विद्यमान है। थोड़े से आप के समाजियों को छोड़ के देश का तृतीयांश से अधिक समुदाय इसे सुनते ही कहने वाले को अपने आचार विचार का बिद्रूपकारक समझ के चौक उठता है । फिर ऐसे शब्द के प्रयोग को क्या आवश्यकता है जिस के द्वारा हमारे अधिकांश भ्रातृगण के शांतिप्रवाह में विक्षेप हो ? ___ नव०--अजी वाह ! यह भी कोई बात है कि जिस अच्छी बात को मूर्खलोग नापसंद करें तो उसे समझदार भी छोड़ बैठे ? भला बतलाइए तो इसमें क्या बुराई है ? संस्कृत का शब्द है नमः, और ते मिल के बना है जिस का अर्थ है कि मैं तुम्हारा मान्य करता हूँ । यदि हमने ऐसा कहा तो क्या अपराध हुवा ? ____सना०--किसी की रुचि के बिरुड कोई काम करना ही अपराध कहलाता है, विशेषतः जब आप शिष्टाचारसूचक कई एक सर्वप्रिय शब्दों के होते हुए केवल अपनी बिलक्षणता दिखलाने और अपने सई वृहत समुदाय से पृथक जतलाने की मनसा से उक्त शब्द को काम में लाते हैं तो क्योकर अपराध से अलग रह सकेंगे ? अपराध ही नहीं बरंच यह पाप भी है कि मुख से कहते हो-मैं तुम्हारः मान्य करता हूँ...पर मन से उन्हें मूर्ख समझते हो । क्या दूसरों को मूर्ख समझना कोई बुद्धिमानी है ? नमस्कार का अर्थ भी तो यह नहीं है कि मैं तुम्हें गाली देता हूँ, पालागन का अर्थ भी तो यह नहीं है कि मैं तुम्हें लातें मारता हूं, राम राम का अर्थ भी यह नहीं है कि मैं तुम्हारा शत्रु है, फिर इन सब को छोड़ कर एक बात ही को हारिल की लकड़ी बनाना कहां की भलमंसी है। नव-यह तो आप जबरदस्ती करते हैं । भला व्याकरण की रीति से नमस्कारमात्र कहने में यह अर्थ कहां से निकालिएगा कि-मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं। सगा०-- यदि सामाजिक व्यवहार में आप व्याकरण छांटेंगे तो बात २ में दांता. किलकिल उठ सकती है। व्यवहारशास्त्र के अनुसार तो एक शब्द बोलने से तत्संबंधी अन्य शम्द भी समझ लिए जाते हैं। यह सब देश की भाषाओं का नियम है। पर व्याकरण की रीति से माप की नमस्ते का एक अर्थ यह भी हो सकता है कि जिस के मस्तक पर न हो,अर्थात् मस्तक में होने वाले अवयव नेत्र, बुद्धि वा शृङ्ग जिसके न हों। म.--हहहः शायद यही अर्थ समझ के आप नमस्ते काने से जलते हैं।