पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४९७

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सुचाल-शिक्षा]
४७३
 

सुबाल-शिक्षा ] ४७३ भोजन से निवृत्त हो के जाना उचित है । बस, इस प्रकार का व्यवहार सदैव दृढ़ता के साथ अंगीकार किए रहने का विचार रखोगे तो देखागे कि दूसरे लोग तुमसे और तुम दूसरों से कितने सुखी एवं संतुष्ट रहते हो तथा जीवन के बड़े२ अथच कठिन २ कर्तव्यों में कितना सहारा मिलता है। चौथा पाठ समय पर दृष्टि जिन्हें अपना जीवन मसाधारण बनाना है उनके लिए यह भी एक अत्यावश्यक कर्तव्य है कि समय पर सदा दृष्टि रखें। उसका छोटे से छोटा अंध भी व्यर्थ न जाने दें, क्योकि यह वह अमूल्य पदार्थ है कि बीत जाने पर कभी किसी प्रकार फिर नहीं मिल सकता। जो घंटा, जो घड़ी, जी पल अबीत गया है उसे हम लाखों करोड़ों अरबो रुपया खोकर अथवा बरसों कठिन परिश्रम में संलग्न होकर भी अब नहीं प्राप्त कर सकते। जो व्यतीत हो गया वह बस सदा सर्वदा के लिए हाथ से जाता रहा । बहुधा युवक लोग बाल्यावस्था को निद्वन्दता औ वृद्धजन योवनकाल के भोग विलासों का स्मरण करके वर्तमान दशा की निदा किया करते हैं और पुरानी बातो के लिए पछताया करते हैं। पर वह पछताना व्यर्थ है, क्योंकि जो दिन बीत गए, वे बस, गए, अब उनका लौट आना किसी रीति से संभव नहीं है। हां, उन पिछले दिनों के कर्तव्यों मे यदि न चूकते अथवा यों कहो कि उस समय को व्यर्थ न स्वोते, तो आज पछिताना न पड़ता। पर यह विचार साधारण लोगों को पहिले से नहीं होता, इसी से उन्हें अंत में पछिताना पड़ता है। यदि हमारे पाठक इस पुस्तक को केवल देख डालना न चाहते हों बरंच पढ़ लेने अर्थात् पढ़ कर इसके उपदेश सच्चे जी से ग्रहण करने और उनके द्वारा अपना जोवन सुधारने की इच्छा रखते हों, तो उचित है कि समय की अमूल्यता पर अवश्य ध्यान रक्खा करें । घड़ो का सुई जितने काल में एक चिह्न से दूसरे विह्न तक जाती है वह काल मिनट कहलाता है। जितने समय में आंख एक बार मंदकर झट से खोल दी जाती है, वह समय पल कहलाता है । मिनिट वा पल का साठवां भाग सेकिंड वा विपल बोला जाता है । यह सेकिंड अथवा विपल यों साधारण दृष्टि से देखो तो बहुत ही तुच्छ जान पड़ते हैं, पर विचार करके देखने से विदित हो जाएगा कि मिनिट वा पल घड़ी और घंटा तथा दिन रात, सप्ताह, पक्ष, मास, वर्ष, शताब्दी सब इन्हीं से बनते हैं। फिर इन्हें तुच्छ समझना कहां की बुद्धिमानी है ? तीन लोक और तीन काल में • देखकर डाल देना वा फेंक देना । • ढाई घड़ो का घंटा होता है ।