पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५११

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सुचाल-शिक्षा]
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४७ सुवाल-शिक्षा ] हैं कि जो लोग जिस समाज की रीति नीति चाल ढाल इत्यादि का पूर्ण ज्ञान और उस पर सच्चे बी से श्रद्धा रखते हैं, वे ही उस के अधिकांश पर सहज रोति से भली भांति अपना प्रभाव स्थापित कर सकते हैं और इस के विपरीत आचरण रखने वालों का प्रथम तो परिश्रम ही व्यर्थ जाता है, और यदि उस की सिद्धि हुई भी तो बड़ी कठिनता से बहुत ही थोड़ी होती है, मतः बुद्धिमानों का धर्म है कि अपने देश इयों को रुचि रखने का अभ्यास अवश्य करते रहें। इस से निश्चय वहुत से लोग "मन रा- पूर्वक गाव देवे और प्रत्येक संकल्प की पूर्ति में हाथ बंटाने को तत्पर रहा करेंगे, तथा बड़े २ अनुष्ठानों में बहुत से लोगों की सहायता के द्वारा सुगमता प्राप्त होना असंभव न होगा एवं अपनी आत्मा भी एक अपूर्व संतोष लाम करती रहेगी मथर यदि किसी वृहत कार्य का अवसर म भी मिले तथापि धन पशादि जीवनोपयोगी पदार्थ और गुणों का व्यर्थ नाश न होगा, क्योंकि संसार में ऐसे लोग बहुत थोड़े हुआ करते हैं जो अपनी बड़ो सजनता अथवा अतीव दुर्जनता के कारण बड़े २ गुण वा दुर्गुणों को आश्रय प्रदान करके अपने और पगए बड़े भारी लाभ और हानि का हेतु होते हो । माधारण जनसमूह प्रायः उसी तरै पर चलना रुचिकर समझता है जिस के द्वारा यदि विशेष लाम न हो तो बड़ी क्षति की संभावना भी न हो, और संस्था इसी प्रकार के लोगो को बहुत होती है । इसलिए बहुत से लोगों को अपना साथी बनाए रखना वृहजीयन की इच्छा रखने वालों का परम कर्तव्य है, जिस का सेवन करने से यदि दैवाद कोई घोर विपत्ति भी आ पई, तो इस विचार से अधीरता नहीं सतातो कि हमारे बहुत से सहायक है ! और ऐसा विचारमा प्रायः निष्फल भी नहीं जाता, क्योकि जिसे बहत जने सब बातों में अपना समझते हैं, काम पड़ने पर उस के कुछ न कुछ काम भी आया ही करते हैं, और बीवनयात्रा मे प्रत्येक रीति की सुविधा के लिये इस को परमावश्यकता है। यह माना कि जगत् में सच्चे पित्र का मिलना बड़ी ही भाग्यमानी के आधीन है, पर इस में संदेह भी नहीं है कि साधारण रौति से हित रहने वालों का समुदाय लोकलजा का ध्यान रखने से प्राप्त हो सकता है। अतः इस पुस्तक के पढ़ने बालों को योग्य है कि छोटा वा बड़ा जो काम करें उस के पहिले यह अवश्य कोच लिया करें कि हमारे ऐसा करने से चार जने हमें क्या कहेंगे ? बस, इस प्रकार के विचार का यह फल प्रत्यक्ष देखने में आवेगा कि जिन अवसरों पर दूसरे लोग घबरा उठते हैं उन में भी वित्त को कैसा कुछ धैर्य बना रहता है कि अनुमची ही जानते हैं । जैसा कि एक जुद्धिमान का वाक्य है कि "पंचो शामिल मर गया जैसा गया बरात ।"