पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५२०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[प्रापनारायण-ग्रंथावती अपनी आत्मा के अनुसरण का अभ्यास करते रहें। जिस बात में जी तनिक भी हिचके उसे यत्नपूर्वक छोड दिया करें। इस रीति से स्वयं अनुभव हो जायगा कि मनुष्य को अंतरात्मा ईश्वर प्रदत्त महाप्रसाद है। वह सदा उत्तम ही कर्मों का प्रसन्नता- पूर्वक अनुमोदन करती है। जिस कार्य में जिवित भी बुराई अथवा अपनी पराई सच्ची हानि की संभावना होती है, उस से दूर रहने का हृदय को उपदेश दे देती है। हमारे पूर्व पुरुषों ने उगे परमदयामा परमात्मा का निकटवर्ती माना है । यहाँ तक कि हमारी भाषा में ब्रह्म शब्द को उस का भी पर्याय समझते हैं। जहाँ दृढ़ निश्चय होता है, वहाँ ग्रामवासी तक कहते हैं कि हमारा ब्रह्म योलता है कि यह बात यों ही होगी अर्थात् हमारा अंतःकरण साक्ष्य देता है कि इस बात का परिणाम यों ही होगा इसमें संदेह नहीं है । जब कि अंतःकरण की इतनी महिमा है तो फिर उस का उचित प्रादर करने वाले किसी दुष्कर्मजनित दुरवस्था में क्यो कर पड़ सकते हैं ? चौदहवां पाठ संगति का विचार ___ अकेले रहने से मनुष्य का निर्वाह कठिन होता है, अत: उसे संग बनाने की आवश्यकता पड़ती है और यह भी ठीक है कि वित को वायु की भांति मिलिप्त बनाए हए अनुभव प्राप्ति के हेतु सभी प्रकार के लोगों से मिलते रहना पूर्ण दक्षता का हेतु होता है । जैसे पवन सुगंध दुर्गंधमय सभी स्थानों में संनार करता है किंतु उन स्थानों के गुण दोष से लिप्त नहीं होता, ऐसे ही बुद्धिमानों को चाहिए कि भले बुरे सभी लोगों के रंग ढंग देखें, किंतु उन के संसर्ग से दूषित न हों। पर यह बात केवल उन्हीं से हो सकती है जो निलिप्तता का चिरकालिक अभ्यास रखते हैं, प्रत्येक व्यक्ति से ऐसा होना सहज नहीं है। बहुधा देखा गया है कि संगति के प्रभाव से बड़े बड़ों की गति मति कुछ की कुछ हो गई है। यदि सौभाग्यवशतः ऐसा न भी हो तो भी लोक समुदाय में चर्चा तो प्रायः फैल हो जाती है और इस का भी भला वा बुरा प्रभाव हुए बिना नहीं रहता। इसलिए आत्मश्रेयोमिलाषियों को उचित है कि संगी बनाने में बहुत सोच विचार से काम लिया करें। यहां पर यह भी स्मरण रखना योग्य है कि घृणा की दृष्टि से तो किसी को न देखना चाहिए, क्योंकि साधु व्यवहार और मिष्ट भाषण के द्वारा मानव मात्र सुमार्गी बनाए जा सकते हैं, तथा ऐसा वधि मी किसी के साथ करना उचित नहीं है जिस में वह रुष्ट हो, क्योंकि इस से अपनी हानि की सम्भावना रहती है। किन्तु जो लोग चोरी जारी यून मद्य छल प्रपंच ऐत्यादि के लिए प्रसिद्ध हों, उन से अधिक हेल मेल रखना अयोग्य है, क्योंकि ऐसों के पास बैठने से दुयंसन और दुर्नाम