पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५३३

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सुचाल-शिक्षा]
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सुचाल-शिक्षा ] ५.९ जो अपव्यय के कारण धन को संचित रखने मे अक्षम हैं, वह उदारता के समय क्या व्यय कर सकता है ? जो लेन देन मे खरा नहीं है, वह आवश्यकता पड़ने पर कहां पा सकता है ? जो बल के ह्रासवृद्धि की चिंता नहीं रखता, वह प्राणविसर्जन के अवसर पर या तो निस्साहस हो बैठेगा या वृथा जो खो बैठेगा। जो अपने और आत्मीयो के मानरक्षण में प्रसिद्ध नहीं हो रहा,उस की प्रतिष्ठा काम पड़ने पर कितनी प्रभावशालिनी होगी? इस से पाठकगण को उचित यही है कि नित्य के कामो का निर्वाह बहुत ही सावधानी से किया करें । किसी करणीय कार्य का छोटा अथवा साधारण न समझ कर उस के करने मे पूर्ण रूप से मन और तन लगाए रवा करें। नहीं तो छोटे ही छोटे काम बहुधा बढ़ कर कठिन हो जाते हैं तथा बड़ी भारी उलझन और असुविधा उत्पन्न कर देते हैं । इस से इन मे कभी आलस्य वा उपेक्षा न करनी चाहिए। यदि किसी कारण विशेष से कोई नियम कभी भग्न हो जाय तो मन को धिक्कार दे के और पंच तथा परमेश्वर से क्षमा मांग के आगे के लिये साव ,न हो जाना उचित है । यस, ऐसा करते रहने से प्रत्येक वृहत कार्य की योग्यता और उस के संपादन में आत्मिक तथा सामाजिक सहायता का अभाव न रहेगा और द्वारा जीवन की सार्थकता का मार्ग खुला हुआ दिखाई देगा। इक्कीसवां पाठ स्मरणीय वाक्य १-सब काल और सब टौर ईश्वर को अपना सहायक समझकर उसका धन्यवाद करते रहो तो चित व भी विकल नही होता। २-सब दिशाओं मे सुखी रहने और सब सिद्धियों के प्राप्त करने का एकमात्र उपाय प्रेम है। ३-पाषाण की मूर्तियां इस कारण देवता कहलाती हैं कि न वह किसी से द्वेष रखती हैं न किसी से याचना करती हैं,न किसी की निन्दा करती है न आदर पाए बिना किसी के यहाँ जाती हैं। यदि यह गुण मनुष्य में हों तो क्या ही कहना है। ४-सच्चरित्रता के बिना विद्या की विडंबना होती है। ५-अच्छा काम जितना हो सके उतना ही अच्छा है। ६-रोग, सर्प, अग्नि, दुष्यंसन, शत्रु और ऋण को छोटा कभी म समझना चाहिए।