पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/६३

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टेढ़ जानि शंका सब काहू वेद शास्त्र पुराण इंजील कुरान चाहे जो कहें, देवता रिषि मुनि पीर पैगबर चाहे जो बकै, पर संसार का चलन त्रिकाल में यही है कि 'टेढ़ जानि शंका सब काहू' । चाहे जैसा न्यायी, चाहे जैसा धर्मात्मा, चाहे जैसा सच्चा, चाहे जैसा धीर वीर गंभीर कोई क्यों न हो, फक्कड़ से सबको कोर दबती है। जिसने समझ लिया कि हाँ 'जिस तरह सब जहान में कुछ हैं हम भी अपने गुमान में कुछ हैं', उसी को सब साध्य है । वह चाहे जो करै कोई उसकी दुलखने वाला नहीं । वह किसी मनुष्य का बध कर डाले तो नरमेव गज्ञ, व्यभिचार करले तो गंधर्भ विवाह है, विश्वासघात करे तो चतुरता (हिकमत अमल ) है । उसे सब सोहता है। किसके कलेजे मे बल है जो उसके आगे अलिफ से वे निकाले । गुरू जी सब लड़कों के लिये काल होते हैं पर नटखट लड़के से थरथराते हैं। वेश्याएं सीधे सादे कामियों का सर्वस्व हर लेती और अंगूठा दिखा देती हैं, पर वे हाड़े के आगे हाथ जोड़ें-"मैं तो हाजिर बंदियाँ तेरियाँ रे, क्यो बोलता यार बोलियाँ रे" न कहे तो जायं कहाँ ? ऐसे २ अनेक दृष्टांत हैं जिनसे स्वयं सिद्ध है, "टेढ़ जानि शंका सब काहू" । हिंदुस्तान में मुसलमानो की संख्या थोड़ा, धन थोड़ा, विद्या थोड़ी, फिर क्यो वे गाय मार डालें, हम अपने ठाकुर न निकाल पावें; हमारे देवताओं और ऋषियो को निर्लन गाली बके, हम उनकी किताबों के अनुसार सीधा जबाब भी न दे सकें ? क्या यह बात निरी खुशामद है कि "सर्कार अंग्रेजी के राज्य में बाघ बकरो एक घाट पानी पीते हैं ?" नही । पर "टेढ़ जानि शंका सब काह" भी तो बड़े महात्माओं का अनुभूत वाक्य है। कहां तक कहिये, परमेश्वर भी जो बड़े २ ऋषियों के ध्यान में भी नहीं आता ( ब्रह्म सदा सबही ते परे हैं ), वुह सच्चे प्रेमी (दुनिया भर से टेंडे अर्थात् आने प्रेमानंद के आगे संसार परमार्थ दोनों को तुच्छ समझने वाले ) से पल भर न्यारा नहीं हो सकता। टेढ़ाई की सब ठौर इबत है। वैष्णवों में भगवान् कृष्णचंद्र का नाम ही त्रिभंगी, शैवों में "गौरी बर बांके को कुटुंब सब बांको है", शाक्तों में भगवती "कालाघ्राभां कटाक्षररिकुलभयदां मौलिवन्धेन्दु रेखां" सोरी में सूर्य नारायण की चाल ( उत्तरायण दक्षिणायण अर्थात् सीधी नहीं), गाणपत्यों में गणेश जी की शुडांदंडे, मुसलमानों में काबे की महिराब, ईसाइयों में क्रास, वीरों में "बड़े लड़या महुबे वाले जिनके बेंडि बहै तरवारि", रसिकों में "अदा है जिसकी बांकी तिरछी चितवन चाल मस्तानी" । अब कहो सुहृदगण, "टेढ़ जानि शंका सब काह" में क्या संदेह ? हमारे सीधे सच्चे गऊ हिंदुस्तानी इसका मजा क्या जानें । इसके लिये तो