पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/७७

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मुनीनांचमतिभ्रमः ] खसम-अरबो में खिस्म शत्रु को कहते हैं। सन्तान-जो सन्त अर्थात् बाबा लम्पटदास की आन से जन्मे ! बालक-बा सरयूपारी भाषा में 'है' को कहते हैं, जैसे 'ऐसना' अर्थात् ऐसा ही है, और लक निरर्थक शब्द है । भाव यह कि होना न होना बराबर है। लड़का-जो पिता से तो सदा कहे 'लई' अर्थात् लड़ ले और स्त्री से कहे, का (क्या आशा है ? )। छोरा-कुल धर्म छोड़ देने वाला (रकार डकार का बदला)। छोकड़ा और लौड़ा-स्पष्टार्थ । पुत्र-पु माने नर्क (संस्कृत) और त माने तुझे (फारसो, जैसे जवाबत् चिदिहम- तुझे उत्तर क्या हूँ) और रादाने पातु है, अर्थात् तुझे नर्क देने वाला। सं० २, सं० ६, ९-१० (१५ अगस्त, दिसंबर १८८४ ई.) खं ३, सं० ९-१०, ११ (१५ नवंबर-दिसंबर, जनवरी, हरिश्चंद्र संवत् १ और २) मुनीनांचमतिभ्रमः हमारे परम सुयोग्य मननशील 'उचित वत्ता' भाई पूछते हैं, 'क्या प्रयागराज में अंगरेजी राज्य नहीं है ?' क्यों, क्या वहां चुंगी नहीं है ? क्या वहा उरदू नहीं है ? क्या वहाँ दरिद्र नहीं है ? क्या वहां शराब नहीं है ? क्या वहाँ गोरे रंग का अयोग्य पक्षपात नहीं है ? अंगरेजी राज्य के यावत अवयव तो हैं फिर अंगरेजी राज्य नहीं है ? आप आज्ञा करते हैं, आजकल जिधर देखो उधर अत्याचार की वृद्धि देख पड़ती है। मेरे प्यारे, बताओ तो वो कब ना ? 'देवो दुर्बल घातकः' कोई झुठला सकता है ! कोई. नेचर से लड़ सकता है ? हमेशा से हत्या का नाम यज्ञ वा बलि चला आया है। अत्याचार क्या माने ? हां, अब जाना !! हिंदी प्रदीप संपादक श्रीयुत पंडित बालकृष्ण भट्ट महाशय को थोड़े से गुंडों ने मारा, यह सुनके हमारा भी कलेजा फट गया, पर क्या करें। यह तो जमाना ही ऐसा है । 'उमराव औ सूग वजीर थके सब सान गई सब जंगिन की। बरछी तरवार छिपाय घरी चमकी चपरास फिरंगिन की ॥ डर छूटि गयो पदमाकर जू न रही कुलकानि अधांगिन की। जब ते अंगरेज को राज भयो बनि आई है नगन नंगिन की ॥ १ ॥ इलवर्ट बिल में हमारे लार्ड रिपन स्वामी की तो गुंडों ने अप्रतिष्ठा करी डाली (आशा भंगो नरेंद्राणां' अशस्त्रवध उच्यते )। दूसरों की कौन ? मुंडों से किसकी चलती है ? उनका तो राज है । दूसरों की खबर लें, तीसरे की खबर