पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/७८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

५६ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली लें, कोई मीरा गुसयाँ है ? मरही तो भलेमानुष की है जिनके इनतें होती हैं । हमें यह देख के आश्चर्य होता है जब कि हमारे चतुर चूड़ामणि उचितवक्ता कहते हैं कि- 'आश्चर्य का विषय है कि आज तक गवर्नमेंट ने..."ध्यान न दिया ?' क्या किसी के घर सोने की खान निकली है जो गवर्नमेंट ध्यान दे ? क्या किसी ने ब्येक का रुपया मारा है जो गवर्नमेट ध्यान दे ? क्या किसी गोरे को मारा है गवर्नमेट ध्यान दे ? और सुनो, 'क्यों वहाँ ऐसे अत्याचार होने लगे'। मान्यवर भट्ट जी लखपती अंधेरी मजिस्ट्रेट नहीं, पहलवान नही, शुहदे नहीं, फिर क्यों सच बोलते हैं ? क्या नहीं जानते 'श्रेयांसि बहुबिध्नानि'। वाह वाह ! 'ब्रिटिश राज्य में ऐसी अराजकता है' आप स्वप्न में नहीं सोचते थे ? वेब दुष्ट का मुकदिमा भूल गए ? अरे भाई ! हम 'गरीबों का खुदा फर्यादरस है'। याद रहे अपनी इनत अपने हाथ है 'कोऊ काहू को नहीं देखी ठोकि बजाय' । गवर्नमेट केवल मतलब की यार है । नहीं प्रमाण दीजिए, कब और कहां, बिना स्वार्थ, हमारे दुख सुख में हाथ डाला है ? हाँ यह बातें हैं, 'हमको संपादक की बेइजती से बेइजती समझना चाहिए'। बेइजतो तो उसी दिन हो गई जब सुरेंद्रो बाबू कारागार गए थे । नहीं २, कोई कुसूर करके न वह जेलखाने गए न यह कोई अपराध करके मारे गए । पीछे से बैल सोग मार दे तो बेइजती को कौन बात है ? पर ही मौत ने घर देख लिया । अब बेशक इस विषय का घोर आंदोलन करना चाहिए । सो क्या लेखणी से के बरसे हुई संपादक समाज स्थापन होती है ? कुछ करो घरी भी। एक बार लिखने से क्या होगा? बांधो कमर ! पहिले भट्ट जी से कहो 'क्षमा खड्गं करे यस्यं दुर्जनः कि करिष्यति' से काम न चलेगा। 'नेकी करनी बदों से ऐसी है जैसे नेकों से की बदी तूने' इस महा वाक्य पर ध्यान दें। 'कान्यकुन्ज प्रकाश' से कहो, रंडरोना बंद करें। भला देश भर में तो एका होगा तब होगा, संपादक समूह तो सहानुभूति दिखावे ? जल्दी समाज का ढंचर बदल डालिए, जल्दी कीजिए नहीं निश्चय 'कुशल नहीं है। यही बस एक कही तुमने मेरे मन को सी! कौन जाने कल को प्रेस एक्ट ही जारी हो जाय ! परमेश्वर न करे ! पर अग्रसोची सदा सुखी। सबको मालूम तो हो जाय कि इतने संपादक 'एक जान सद कालिब है'। कहते बनता है ? खं० २, सं०८ (१५ अक्टूबर सन् १८८४ ई.) मुच्छ इस दो अच्छर के शब्द में संसार भरे को ऊंच मीच देख पड़ती है। इन थोड़े से बालों में उस परम गुणी ने न जाने कितनी कारीगरी खर्च की है, साधारण बुद्धि वाले बाल भर नहीं समझ सकते । सांसारिक संबंध में देखिए तो पुरुष के मुख की शोभा यही