६४ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली और यदि प्रेम दृष्टि से देख सको तो प्रातःस्मरणीय हरिश्चंद्र हाथ जोड़ने योग्य थे। हमने माना कि वैश्य वंशावतंस ब्राह्मणों से हाथ जुड़वाने में प्रसन्न न होते थे पर जिनको उनसे अभिन्न मैत्री थी, जो उनका तत्व जाने थे, वे कोरे शिष्टाचार का कहाँ तक निरबाह कर सकते ? हाथ जोड़ना भी, जुड़वाना भो, सभी चित्त की उमंग पर होता है। पर निरे आग्रहो क्या जान सकते हैं। फिर जरा होश की दवा कीजिए। आपका यह कथन कि 'कोई कोई प्रेमांध होकर आज तक रोना कल्पना की कविताई झाड़ रहा है', क्या यह गये फाग ढढ़नच नहीं है ? 'सहृदय' प्रेमी को सदा से अपने पिय वियोग में ऐसा ही करते आये हैं । यदि गोस्वामी तुलसीदास जी की रामायण भी आप समझ सकते होते तो महाराज दशरथ जी का प्राण परित्याग एवम् भगवान् रामचंद्र जी का विलाप इत्यादि हम आपको दिखा देते। पर हृदयांध बिचारे प्रेमांध महानुभावों की रीति नीति क्या जानें ! अरे बाबा ऐसी ही समझ है तो दोनों' का प्रेमा बनके क्यों इस परम पवित्र को कलंकित करने की इच्छा करते हो। रही कविता, सो कविता समर्थ लोग योग्य पुरुषों के नाम पर करते ही हैं और करते ही रहेगे, तुम्हारे रोके कौन हकेगा ? तुम्हारे लिये तो यही श्रेयष्कर है कि इस विषय में कान ही न हिलावो । ऐसा न हो कि कोई जला भुना कह बैठे कि ऐसे स्थान के रहने वाले पाषाणहृदय चित्त- द्राविणी कविता का स्वादु क्या जानें जहाँ केवल मृतकों के नाम पर लोगों की रोटी चलती है । भया ! राजा मुंना ! संवत् देशहितैषी प्रतापी पुरुषों का चलता है, किसी जाति का नियम नहीं है, नहीं तो ईसा और मुहम्मदादिकों का संवत् आर्य देश में न प्रचलित होता। और सुनियें । क्षत्री उसको कहते हैं जो क्षति से रक्षा करै 'क्षतात त्रायते' । सो गुण तो हमारे बीर वैष्णव बाबू जी में था हो । यदि आप केवल जाति से क्षत्री लेते हो तो बताइए किस गंडिकादास वा कलहप्रिय क्षत्री का संवत् चला है । हमारे बाल्मीकि प्रभृति विरक्त थे और उनके समय मे तद्गुण विशिष्ट राजा मौजूद । इससे उनके संवत् की कोई आवश्यकता न थी । भारतेंदु को आप निरा कवि ही समझते हैं ? बलिहारी ! एक एक ग्रंथकार को सैकड़ों रु• उठा देने वाला, विद्या और देश हित के हेतु घर फूंक तमाशा देखने वाला, केवल कवि कहने योग्य है ? धिक ! यह सवत् उनका नाम चलाने को नहीं है। यह संपादक समूह की कृतज्ञता का परिचय है अथच हमारे प्रेम का उद्गार है। रहा तसबीर का विषय सो अपनी अपनी सामर्थ्य है । यदि आप सब खरीद के सेंत मेंत बाट दीजिए तो आपका आक्षेप सार्थक हो । बेचने वालों के प्रेय की परीक्षा हम आपको दिला देंगे कि केवल अपनी मेहनत का योड़ा सा रुपया लेके बाम दिला दिया जायगा । ऐसा भी तो कोई हो जिसकी तस्वीरों से आपके कथना- नुसार लोगों का रोजगार चला। आप तो अपनी तस्वीरें छपवा के केवल अपना ही व्यवहार सिद्ध कर लीजिए, देखिये तो के जने लेते हैं ? इसी से कहते हैं होश में आओ! सं० ३ सं० २ ( १५ अप्रैल ह• सं० १)
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