पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/८९

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रूस और मूस ] सम्वत् लिखने (कितए तारीख) में कहा करते हैं, 'हातिफे गैब ने कहा नागाह काले साहब को सुर्खरू पाया' फिक्रे तारीख जब हुई दरपेश । गैब से मुझ को यह निंदा आई' इत्यादि एक नहीं लाखों उदाहरणों से सिद्ध है कि एशिया के ग्रन्थकार मात्र अन्तःकरण को आकस्मातिक, गति को आकाशवाणी कहते हैं। किसी देशभाषा के आर्ष प्रयोग में बिना समझे, बिना किसी विद्वान् से पूछे, हंस देना मूर्खता को पहिचान है। यदि कोई अंगरेज कहे'Belly has.no eyes' तो हमारे स्कूल के छात्र भी हंस सकते हैं कि कौन नहीं जानता कि पेट में आँखें नहीं होती। साहब बहादुर ने कौन बड़ी विलक्षण बात कही । यह तो एक बच्चा भी जानता है। पर हां जब उसे समझा दिया जायेगा कि उक्त बात का यह अर्थ है कि गरजमन्द को कुछ नहीं सूझता तब किसी को ठट्टा मारने का ठौर नहीं रहेगा। इसी भांति हमारे यहाँ की प्रत्येक बात का अभ्यान्तरिक अर्थ जाने बिना किसी को अपनी सम्मति देने का अधिकार नहीं है। कुछ समझ में आया? अब न हमारे पूर्वजो के कथन पर कहना कि 'बेउकफ थे, कहीं ऐसा भी हो सकता है' नहीं तो हम भी कहेगे कि '... है। जानै न बूझ कठोता लकै जूझ ।' हि दि हि हि ! खं० ३, सं० २ (१५ अप्रैल ह० सं० १) रूस और मूस पहिले साहब सैकड़ों कोस की दूरी से आने की धमकी मात्र दिखला रहे हैं पर दूसरे हजरत 'घर का भेदिया लंकादाह' के उदाहरण बन रहे हैं। वह मार्यों की दृष्टि में म्लेक्ष, मुसलमानों को समझ में काफिर और अंगरेजों की जान में जालिम विख्यात हो रहे हैं इससे उनका विश्वास अभी से नहीं किया जाता। पर यह हमारे गणेशजी के वाहन और मुसलमानों तथा अंगरेजों के पैगम्बर के हमनाम (नामरासी) हैं। अतएव इनसे बचना मुश्किल है। क्योंकि 'मारत हू पाय परिय तुम्हारे ।' उनका रूप चित्र में देख के डर लगता है। 'फौज रूसियों की भुच्च जिनकी हाथ २ भर की मुच्छ' । कौन उन्हें पतियायगा ! पर इनके गोरे २ नन्हें २ कोमल २ हाथ पांव देख के ऐसा प्यार लगता है कि पिंजड़े में पाल कर खील और दूध खिलाने को जी चाहता है ! पीछे से चाहे जैसे निकलें। वह बिचारे जब कभी आवैगे तब अंगरेजों से बचा खुचा धन ले जावेंगे वा कुछ लोगों को मार गिराबैंगे और क्या बनावेगे? पर यह अभी से अन्न वस्त्र तक मूसे लिये जाते हैं। वह सामने होके लड़ेंगे तो कदाचित् हम भी मारेंगे और मरेंगे। यह तो कहने को होगा-'यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः' । पर इनसे