पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१२१

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हैं । वे काहे को चूकते हैं । जब द्वापर के अंत में इस देश की ओर आने लगे तो अपना नाम राशी-नगर समझ के इस कान-पुर को अपनी राजधानी बनाया, और बहुत से ककार ही नाम वाले मुसाहब बनाए । जिनमें से छः सभासद हम पर बड़ी कृपा करते हैं । अतः हमने सोचा कि अपने रत्न दयालु जजमानों की स्तुति न करना कृतघ्नता है। छः मुसाहब, एक महाराज, एक उनकी राजधानी की स्तुति में अष्टक बना डालें तो संसारी जीव धर्म कर्मादि से शीघ्र मुक्ति पा सकेंगे। हमारे छः देवता या कलि- राज के मुख्य सहायक यह हैं,-एक कनौजिया यद्यपि कान्य- कुब्ज-मंडली इत्यादि कार्रवाइयां उन्हों ने महाराज की मरजी के खिलाफ़ की हैं, पर महाराज तो बड़े गंभीर हैं, वे बहुत कम नाराज हुए हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि इनकी पैदाइश विराट भगवान के मुख से है, और मुख ऐसा स्थान है जहां थूक भरा रहता है। फिर जो थूक के ठौर से जन्मेंगा वह कहां तक थुकैल- पना न करेगा। दूसरे कायस्थ हैं, इन पर भी कायस्थ-सभा, कायस्थ-पाठशाला का इलज़ाम लग सकता है, और बाजे लोग वैष्णव हो जाते हैं, इससे कलियुग जी नाखुश हो जाय तो अजब नहीं। पर चूंकि कलियुगराज की माशूका बी उरदूजान की सिफ़ारिश है, इससे कोई डर नहीं रहा । तीसरे मुसाहिब कलवार हैं, इनमें वेशक वही लोग हुजूर के कृपापात्र हैं, जो कलवारिया के कार्याध्यक्ष हैं। चौथे कहार, पांचवें कसाई, छठे कसबी यह वेशक बेऐब हैं । इन छहों मुसाहिबों में इतना मेल है कि एक