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के मनुष्यों को मान्य, सब देश काल में साथ हो, जो किसी के भी विरुद्ध न हो । वह चाल-ढाल व्यवहार बतायेंगे जिनसे धन बल मान प्रतिष्ठा में कोई भी वाधा न हो। कभी राज
सम्बन्धी, कभी व्यापार सम्बन्धी विषय भी सुनावेंगे; कभी २
गद्य-पद्य-मय नाटक से भी रिझावेंगे ! इधर-उधर समाचार तो
सदा देहींगे। सारांश यह कि आगे की तो परमेश्वर जानता
है, पर आज हम आपके दर्शन की खुशी के मारे उमंग रोक
नहीं सकते। इससे कहे डालते हैं हमको निरा ब्राह्मण ही
न समझियेगा। जिस तरह 'सब जहान में कुछ हैं हम भी अपने
गुमान में कुछ हैं। इसके सिवा हमारी दक्षिणा भी बहुत ही
न्यून है। फिर यदि निर्वाह मात्र भी होता रहेगा तो हम, चाहे
जो हो, अपने वचन निवाहे जायंगे। आश्चर्य है जो इतने पर
भी कोई कसर मसर करे-
हां एक बात रही जाती है, कि हम में कुछ औगुण भी
हैं सो सुनिये । जन्म हमारा फागुन में हुआ है, और होली
की पैदाइश प्रसिद्ध है । कभी कोई हँसी कर बैठें, तो क्षमा
कीजियेगा। सभ्यता के विरुद्ध न होने पावेगा। वास्तविक
वैर हम को किसी से भी नहीं है पर अपने करम-लेख
से लाचार हैं। सच कह देने में हम को कुछ संकोच न
होगा। इससे जो महाशय हम पर अप्रसन्न होना चाहें पहिले
उन्हें अपनी भूल पर अप्रसन्न होना चाहिये । अच्छा लो जो
हमको कहना था सो कह चुके । आशीर्वाद है। दोहाः-