पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१८६

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यही बेहतर कि उसके हक में हम हरदम दुवा माँगैं।
यही बस फर्ज अपना है इसी में सब भलाई है।।
खुदाया खुश रहे वह फ़ख्ते आलम रौजे महशर तक।
कि जिसकी जाते बा बरकत को जेबा सब बड़ाई है।।
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चार्ल्स ब्रैडला की मृत्यु पर।
हाय आज काहू बिधि धीरज धरत बनै ना।
फूटि बह्यो रकत रुकतो रोकै नहिं नैना॥
हाय ! हाय ! हम कह सूझत सब जग अँधियारो।
बिछुरि गयो हा उर-पुर-आस प्रकासन हारो॥
हाय विधाता फाटि पर्यो यह बज्र कहां ते।
उमड़ि उठ्यो हा दैव ! सोक-सागर चहुंघाते॥
अरे काल-चंडाल ! तरस तोहिं नेक न आयो।
निरबल, बूढ़े, रोग-ग्रसित पर दाँत लगायो।।
हाय अभागी हिन्द ! भाग तेरे ऐसे ही।
बेगहि जात बिलाय हाय तव सहज सनेही॥
दयानन्द, हरिचंद अलखधारी केशव कर।
दुख भूल्यो ज्यों त्यों करि छाती धरि पाथर॥
तब लगि हा दुरदैव, और इक घाव लगायो।
रहो सह्यो अवलम्ब अंकुरहि काटि गिराओ॥
हाय हमारे दुख कहं निज दुख समझन हारे।