पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १७६ )

कोऊ भाट बने डोले है संग मैं भाटिन गोरी गोरी है।
सुथरे साई बन्यो फिरै कोउ लै डंडन की जोरी है॥
साहब मेम कञ्जरी कञ्जर कुंजड़ा सिड़ी अघोरी है।
गलियन गलियन विविध रूप के स्वांग दिखावत होरी है॥८॥
नृत्य सभा में नव रसिकन की लसति रंगीली टोली है।
बीच बिराजति बार बधूटी सूरत भोली भोली है॥
देति महासुख बात २ में निधरक हंसी ठठोली है।
हीय हरति वह गोरे मुख सो मधुर सुरन की होली है॥९॥
निज निज बित अनुसार सबन के सुख सीमा इक ठोरी है।
कुशल मनावत बरस बरस की जाकी बुधि नहिं कोरी है॥
बालक युवक वृद्ध नर नारिन अति उछाह चहुं ओरी है।
सबके मुख सुनियत घर बाहर होरी है भइ होरी है॥१०॥
याहू अवसर देश दशा की सुधि दुख देति अतोली है।
सब प्रकार सों देखि दीनता लगति हिए जनु गोली है।
दिन दिन निरबल निरधन निरबस होतिप्रजा अतिभोली है।
हाय कौन सुख देखि समुझिये अजहु हमारे होली है॥११॥
कहं कञ्चन पिचकारी है कहं केसर भरी कटोरी है।
कहं निचिन्त नर नारिन को गन बिहरत है इक ठोरी है॥
चोआ चन्दन अतर अरगजा कहुं बरसत केहि ओरी है।
है गई सपने की सी सम्पति रही कथन में होरी है॥१२॥
कटि गये कटे जात किंसुक बन बिकत लकरियों तोली है।
टेसू फूल मिलत औषधि इव पैसा पुरियो घोली है॥