पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/२०२

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राजा उवाच
बरु ऊपरी दिखाउ में जाहि खजानों खोय।
तोप सलामी की बढ़ैं जन्म सुफल तब होय॥९॥
बुढ़ऊ उवाच।
हारिल की लकरी गहे हमहि न छेड़ै कोय।
अंधियारेहि में तन छुटै जन्म सुफल तब होय॥१०॥
लिकपिट्टन उवाच।
लोटिया थारी काल्हि ही लहनदार लें ढोय।
होय तारीफ़ बरात की जन्म सुफल तब होय॥११॥
पुरोहित उवाच।
बनियन की बुधि धरम धन गंगा देहु डुबोय।
नित्त टका सीधा मिलै जन्म सुफल तब होय॥१२॥
कनवजिया उवाच।
करिया अक्षर बिन हमैं कहैं त्रिवेदी लोय।
मरे बिटेवा मीच बिन जन्म सुफल तब होय॥१३॥
बाल विधवा उवाच।
सती होन सर्कार दे नाहिं तु पंडित लोय।
पुनर्विवाह प्रचार ही जन्म सुफल तब होय॥१४॥
कान्यकुब्ज कन्या उवाच।
मरैं बड़कुला और मम मरैं जु पुरिखा लोय।
चिट्ठी पठवें नर्क से जन्म सुफल तब होय॥१५॥