(७१)
फिर इस बात को कौन कहेगा कि परीक्षा उल्झन का विषय
नहीं है । कपटी ही लोग बहुधा मिष्टभाषी और शिष्टाचारी होते
हैं, थोड़े ही मूल्य की धातु में अधिक ठनठनाहट होती है, थोड़ी
ही योग्यता में अधिक आडम्बर होता है, फिर यदि परीक्षक धोखा
खा जाय तो क्या अचंभा है। सब गुणों में पूरा अकेला परमात्मा
है, अतः ठीक परीक्षा पर जिसकी कलई न खुल जाय उसी के
धन्य भाग ! हमने भी स्वयं अनुभव किया है कि बरसों जिनके
साथ बदनाम रहे, बीसियों हानियां सहीं, कई बार अपना सिर
फुड़वाने को और प्राण देने या कारागार जाने को उद्यत हो गये,
उनके दोष अपने ऊपर ले लिए, और वे भी सदा हमारी
बात २ पर अपना चुल्लू भर लोहू सुखाते रहे, सदा कहते रहे,
जहां तेरा पसीना गिरेगा वहां हमारा मृत शरीर पहिले गिर
लेगा, पर जब समय आया, कि गैरों के सामने हमारी इज्जत न
रहे, तो उन्हीं महाशयों ने कटी उङ्गली पर न मूता!
यदि कोई कहे कि तुम कौन बड़े बुद्धिमान हो जो तुम्हारे तजरबे (अनुभव) पर हम निश्चय कर लें, तो हम मान लेंगे; पर यह कहने का हमें ठौर बना है कि मुद्दत तक राजा शिव- प्रसादजी को सहस्रों ने क्या समझा, और अन्त में क्या निकले ! सैयदअहमद साहब को पहिले बहुतेरों ने निश्चय किया कि देशमात्र के हितैषी हैं, पीछे से यह खुला कि केवल निज सह- धर्मियों के शुभचिंतक हैं। यह भी अच्छा था; पर नेशनल कांग्रेस में यह सिद्ध होगया कि “योसिसोसि तव चरण नमामी" ।