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प्रतिज्ञा

के समान उसे डस लिया। सारी कर्मेन्द्रियाँ शिथिल पड़ गई। थर-थर काँपती हुई वह द्वार से चिपटकर खड़ी हो गई।

कमला उसकी घबराहट देखकर पलङ्ग पर जा बैठा और आश्वासन देता हुआ बोला--डरो मत पूर्णा, आराम से बैठो; मैं भी आदमी हूँ, कोई काटू नहीं हूँ। आख़िर मुझसे क्यों इतनी भागी-भागी फिरती हो? मुझसे दो बात करना भी तुम्हें नहीं भाता। तुमने उस दिन साड़ी लौटा दी, जानती हो मुझे कितना दुःख हुआ?

'तो और क्या करती? सुमित्रा अपने दिल में क्या सोचतीं?

कमला ने यह बात न सुनी। उसकी आतुर दृष्टि पूर्णा के रक्त हीन

मुखमण्डल पर जमी हुई थी। उसके हृदय में कामवासना की प्रचण्ड ज्वाला दहक उठी। उसकी सारी चेष्टा, सारी चेतनता, सारी प्रवृत्ति एक विचित्र हिंसा के भाव से आन्दोलित हो उठी। हिंसक पशुओं की आँखो में शिकार करते समय जो स्फूर्ति झलक उठती है, कुछ वैसी ही स्फूर्ति कमला की आँखों में झलक उठी। वह पलङ्ग से उठा; और दोनो हाथ खोले हुए पूर्णा की ओर बढ़ा। अब तक पूर्णा भय से काँप रही थी कमला को अपनी ओर आते देखकर उसने गर्दन उठाकर आग्नेय नेत्रों से उसकी ओर देखा। उसी दृष्टि में भीषण सङ्कट तथा भय था मानो वह कह रही थी--खबरदार! इधर एक जो-भर भी बढ़े, तो हम दोनों में से एक का अन्त हो जायगा। इस समय पूर्णा को अपने हृदय में एक असीम शक्ति का अनुभव हो रहा था, जो सारे संसार की सेनाओं को अपने पैरों-तले कुचल सकती थी। उसकी आँखो की वह प्रदीप्त ज्वाला, उसकी वह बँधी हुई मुट्ठियाँ और तनी हुई गर्दन

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