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प्रतिज्ञा

देखकर कमला ठिठक गया, होश आ गये, एक कदम भी आगे बढ़ने की उसे हिम्मत न पड़ी। खड़े-खड़े बोला--यह रूप मत धारण करो, पूर्णा! मैं जानता हूँ कि प्रेम-जैसी वस्तु छल-बल से नहीं मिल सकती, न मैं इस इरादे से तुम्हारे निकट आ रहा था। मैं तो केवल तुम्हारी कृपा दृष्टि का अभिलाषी हूँ! जिस दिन से तुम्हारी मधुर छवि देखी है, उसी दिन से तुम्हारी उपासना कर रहा हूँ। पाषाण-प्रतिमाओं को उपासना पत्र-पुष्प से होती है; किन्तु तुम्हारी उपासना मैं आँसुओं से करता हूँ। मैं झूठ नहीं कहता पूर्णा! अगर इस समय तुम्हारा संकेत पा जाऊँ, तो अपने प्राणों को भी तुम्हारे चरणों पर अर्पण कर दूँ। यही मेरी परम अभिलाषा है। मैं बहुत चाहता हूँ कि तुम्हें भूल जाऊँ; लेकिन मन किसी तरह नहीं मानता। अवश्य ही पूर्व जन्म में तुमसे मेरा कोई घनिष्ठ सम्बन्ध रहा होगा, कदाचित् उस जन्म में भी मेरी यह लालसा अतृप्त ही रही होगी। तुम्हारे चरणों पर गिरकर एक बार रो लेने की इच्छा से ही मैं तुम्हें लाया। बस, यह समझ लो कि मेरा जीवन तुम्हारी दया पर निर्भर है। अगर तुम्हारी आँखें मेरी तरफ से यों ही फिरी रहीं, तो देख लेना, एक दिन कमलाप्रसाद की लाश या तो इसी कमरे में तड़पती हुई पाओगी, या गड़्गा-तट पर; मेरा यह निश्चय है।

पूर्णा का क्रोध शान्त हुआ। काँपते हुए स्वर में बोली--बाबूजी, आप मुझसे कैसी बातें कर रहे हैं, आपको लज्जा नहीं आती?

ला चारपाई पर बैठता हुआ बोला---नहीं पूर्णा, मुझे तो इसमें लज्जा की कोई बात नहीं दीखती। अपनी इष्ट देवी की उपासना करना