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प्रतिज्ञा

कहा--अब जाने दो बाबूजी, क्यों मेरा जीवन भ्रष्ट करना चाहते हो। तुम मर्द हो तुम्हारे लिए सब कुछ माफ़ है, मैं औरत हूँ, मैं कहाँ जाऊँगी? दूर तक सोचो। अगर घर में ज़ऱा भी सुनगुन हो गई, तो जानते हो मेरी क्या दुर्गति होगी? डूब मरने के सिवा मेरे लिए कोई और उपाय रह जायगा? इसको सोचिये, आप मेरे पीछे निर्वासित होना पसन्द करेंगे? और फिर बदनाम होकर--कलङ्कित होकर जिये, तो क्या जिये। नहीं बाबूजी, मुझपर दया कीजिये। मैं तो आज मर भी जाऊँ, तो किसी की कोई हानि न होगी, वरन् पृथ्वी का कुछ बोझ ही हलका होगा; लेकिन आपका जीवन बहुमूल्य है। उसे आप मेरे लिए क्यों बाधा में डालियेगा? ज्योंही कोई अवसर आयेगा, आप पर झाड़कर अलग हो जाइयेगा, मेरी क्या गति होगी--इसकी आपको उस वक्त ज़रा भी चिन्ता न होगी।

कमला ने जोर देकर कहा--यह कभी नहीं हो सकता पूर्णा, ज़रूरत पड़े तो तुम्हारे लिए प्राण तक दे दूँ। जब चाहे परीक्षा कर देखो।

पूर्णा--बाबूजी, यह सब खाली बात ही बात है। इसी मुहल्ले में दो-एक ऐसी घटनाएँ देख चुकी हूँ। आपको न जाने क्यों मेरे इस रूप पर मोह हो गया है, अपने दुर्भाग्य के सिवा इसे और क्या कहूँ। जब तक आपकी इच्छा होगी, अपना मन बहलाइयेगा, फिर बात भी न पूछियेगा, यह सब समझ रही हूँ। ईश्वर को आप बार-बार बीच में घसीट लाते हैं, इसका मतलब भी समझ रही हूँ। ईश्वर किसी को कुमार्ग की ओर नहीं ले जाते। इसे चाहे प्रेम कहिये, चाहे वैराग्य

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