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प्रतिज्ञा

नौ भी नहीं बजे। ज़रा अमृतराय के यहाँ चला गया था। अजीब आदमी हैं। जो बात सूझती है, बेतुकी। अपने पास जितने रुपए थे, वह तो ईट-पत्थर में उड़ा दिये। अब चन्दे की फ़िक्र सवार है। अब और लीडरों की तरह इनकी ज़िन्दगी भी चन्दों ही पर बसर होगी।

प्रेमा ने इसका कुछ उत्तर न दिया। हाँ में हाँ मिलाना चाहती थीं, विरोध करने का साहस न था। बोली---अच्छा चलकर भोजन तो कर लो, महराजिन कब से भुन-भुना रही है कि यहाँ बड़ी देर हो जाती है। कोई उसके घर का ताला तोड़ दे, तो कहीं की न रहे।

दाननाथ को इस समय भोजन करने की इतनी जल्दी न थी, जितनी प्रेमा के जवाब को उत्सुकता। आज बहुत दिनों के बाद उन्हें उसकी परीक्षा लेने का वाञ्छित अवसर मिला था। ओवरकोट के बटन खोलने का बहाना करते हुए बोले--मुझे तो अगर चन्दों पर बसर करना पड़े, तो डूब मरूँ। रईसों से कॉलेज के सम्बन्ध में दो-एक बार चन्दे माँगने का मुझे अनुभव है। घण्टों उनकी खुशामद कीजिये, जी-हुज़ूर धर्मावतार जो कहते हैं सत्य है, बस यह करना पड़ता है। मैं तुमसे सच कहता हूँ, कुत्तों की तरह दुत्कारे जाते हैं। मैं तो कहता हूँ कि जब तक किसी के पास काफ़ी रुपया न हो, कोई काम छेड़े ही क्यों। मगर यहाँ तो नाम की हवस मारे डालती है। बस, मेरा भी नाम हो जाय, मैं भी शहीदों में दाखिल हो जाऊँ, जहाँ जाऊँ, जुलूस निकले, फूलों की वर्षा हो, कालेजों के लड़के गाड़ी खींचें। हयादार आदमी तो इसे कभी पसन्द न करेगा कि दूसरों के दान पर चरपौतियां करे। आप को