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पूर्णा प्रातःकाल और दिनों से आध घण्टा पहले उठी। उसने दबे पाँव सुमित्रा के कमरे में क़दम रखा। वह देखना चाहती थी कि सुमित्रा सोती है या जागती। शायद वह उसकी सूरत देखकर

निश्चय करना चाहती थी कि उसे रात की घटना की कुछ खबर है अथवा नहीं। सुमित्रा चारपाई पर पड़ी कुछ सोच रही थी। पूर्णा को देखकर वह मुस्करा पड़ी। मुस्कराने की क्या बात थी, यह तो वही जाने; पर पूर्णा का कलेजा सन्न से हो गया। चेहरे का रंग उड़ गया। भगवान् कहीं इसने देख तो नहीं लिया?

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