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पूर्णा कितना ही चाहती थी कि कमलाप्रसाद की ओर से अपना मन हटा ले; पर यह शङ्का उसके हृदय में समा गई थी कि कहीं इन्होंने

सचमुच आत्म-हत्या कर ली तो क्या होगा? रात को वह कमलाप्रसाद की उपेक्षा करके चली तो आई थी; पर शेष रात उसने चिन्ता में काटी। उसका विचलित हृदय पति-भक्ति, संयम और व्रत के विरुद्ध भाँति-भाँति की तर्कनाएँ करने लगा। क्या वह मर जाती, तो उसके पति पुनर्विवाह न करते? अभी उनकी

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