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बाबू दाननाथ के स्वभाव में माध्यम न था। वह जिससे मित्रता करते थे, उसके दास बन जाते थे; उसी भाँति जिसका विरोध करते थे, उसे मिट्टी में मिला देना चाहते थे। कई महीने तक वह कमलाप्रसाद के मित्र बने रहे। बस, जो थे कमलाप्रसाद थे। उन्हीं के साथ घूमना, उन्हीं के साथ उठना-बैठना। अमृतराय की सूरत से भी घृणा थी---उन्हीं को आलोचना करने में दिन गुजरता था। उनके विरुद्ध व्याख्यान







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