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प्रतिज्ञा

तिरस्कार का भाव धारण करके कहा--तुम उसे इतना नीच समझना चाहते हो, तो समझ लो; लेकिन मैं कहे देता हूँ कि यदि मैं उस मित्र का ठीक अनुमान कर सका हूँ, तो वह अपने बदले तुम्हें निराशा की भेंट न होने देगा।

यह कहते हुए दाननाथ बाहर निकल आये और अमृतराय द्वार पर खड़े, उन्हें रोकने की इच्छा होने पर भी बुला न सके।




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