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प्रतिज्ञा

स्वाभाविक है भाई, तुमने कोई अनोखी बात नहीं की। जब थोड़ा-सा धन पाकर लोग अपने को भूल जाते हैं, तो तुम प्रेमा-जैसी साक्षात् लक्ष्मी पाकर क्यों न फूल उठते।

दाननाथ ने गम्भीर भाव से कहा---यही तो मैंने सबसे बड़ी भूल की। मैं प्रेमा के योग्य न था।

अमृत--जहाँ तक मैं समझता हूँ, प्रेमा ने तुम्हें शिकायत का कोई अवसर न दिया होगा।

दान॰---कभी नहीं, लेकिन न जाने क्यों शादी होते ही मैं शक्की हो गया। मुझे बात-बात पर सन्देह होता था कि प्रेमा मन में मेरी उपेक्षा करती है। सच पूछो तो मैंने उसको जलाने और रुलाने के लिए तुम्हारी निन्दा शुरू की। मेरा दिल तुम्हारी तरफ़ से हमेशा साफ़ रहा।

अमृत॰---मगर तुम्हारी यह चाल उलटी पड़ी, क्यों? किसी चतुर आदमी से सलाह क्यों न ली। तुम मेरे यहाँ लगातार एक हफ्ते तक १०-११ बजे तक बैठते और मेरी तारीफों के पुल बाँध देते, तो प्रेमा को मेरे नाम से चिढ़ हो जाती, मुझे यकीन है।

दान॰---मैंने तुम्हारे ऊपर चन्दे के रुपए हज़म करने का इलज़ाम लगाया हालाँकि मैं क़सम खाने को तैयार था कि यह सर्वथा मिथ्या है।

अमृत॰--–मैं जानता था।

दान॰---मुझे तुम्हारे उपर यहाँ तक आक्षेप करने में सङ्कोच न हुआ कि...

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