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प्रतिज्ञा

देवकी--नहीं, क्षमा कीजिये। इस जाने से न जाना ही अच्छा। मैं ही कल बुलवा लूँगी।

बदरी॰-–बुलवाने को बुलवा लो; लेकिन यह मैं कभी पसन्द न करूँगा कि, तुम उनके हाथ-पैर पड़ो। वह अगर हमसे एक अंगुल दूर हटेंगे, तो हम उनसे गज-भर दूर हट जायँगे। प्रेमा को मैं उनके गले लगाना नहीं चाहता। उसके लिए वरों की कमी नहीं है।

देवकी--प्रेमा उन लड़कियों में नहीं है कि तुम उसका विवाह जिसके साथ चाहो कर दो। ज़रा जाकर उसकी दशा देखो तो मालूम हो। जबसे यह खबर मिली है, ऐसा मालूम होता है कि देह में प्राण ही नहीं। अकेले छत पर पड़ी हुई रो रही है।

बदरी॰--अजी, दस-पाँच दिन में ठीक हो जायगी।

देवकी--कौन! मैं कहती हूँ कि वह इसी शोक में रो-रोकर प्राण दे देगी। तुम भी उसे नहीं जानते।

बदरीप्रसाद ने झुँझलाकर कहा--अगर वह रो-रोकर मर जाना चाहती है, तो मर जाय; लेकिन मैं अमृतराय की खुशामद करने न जाऊँगा! जो प्राणी विधवा-विवाह-जैसे घृणित व्यवसाय में हाथ डालता है, उससे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता!

बदरीप्रसाद बाहर चले गये! देवकी बड़े असमञ्जस में पड़ गई! पति के स्वभाव से वह परिचित थी; लेकिन उन्हें इतना विचार-शून्य न समझती थी। उसे आशा थी कि अमृतराय समझाने से मान जायँगे, लेकिन उसके पास जाय कैसे। पति से रार कैसे मोल ले।

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