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प्रतिज्ञा

मैं यह सोच रहा हूँ कि पूर्णा यहीं आकर रहे, तो क्या हरज है?

कमलाप्रसाद ने आँखें फाड़कर कहा--यहाँ! अम्माँ जी कभी न राज़ी होंगी।

बदरी॰--अम्माँजी की बात छोड़ो, तुम्हें तो कोई आपत्ति नहीं है? मैं तुम से पूछना चाहता हूँ।

कमलाप्रसाद से कहा--मैं तो कभी इसकी सलाह न दूँगा। दुनिया में सभी तरह के आदमी हैं, न जाने क्या समझें। दूर तक सोचिये।

बदरी॰--उसके पालन-पोषण का तो कुछ प्रबन्ध करना ही होगा।

कमला--हम क्या कर सकते हैं?

बदरी॰--तो और कौन करेगा?

कमला--शहर में हमीं तो नहीं रहते। और भी बहुत-से धनी लोग हैं। अपनी हैसियत के मुताबिक हम भी कुछ सहायता कर देंगे।

बदरीप्रसाद ने कटाक्ष-भाव से कहा--तो चन्दा खोल दिया जाय, क्यों? अच्छी बात है, जाव, धूम-घूमकर चन्दा जमा करो।

कमला--मैं क्यों चन्दा जमा करने लगा?

बदरी--तब कौन करेगा?

कमलाप्रसाद इसका कुछ जवाब न दे सके। कुछ देर के बाद बोले--आख़िर आपने क्या निश्चय किया है?

बदरी--मैं क्या निश्चय करूँगा? मेरे निश्चय का अब मूल्य ही क्या? निश्चय तो वही है, जो तुम करो। मेरा क्या ठिकाना? आज

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