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प्रतिज्ञा

कुछ कर जाऊँ, कल मेरी आँख बन्द होते ही तुम उलट-पुलट दो, तो व्यर्थ में और बदनामी हो।

कमलाप्रसाद ने बहुत दुःखित होकर कहा--आप मुझे इतना नीच समझते हैं। यह मुझे न मालूम था।

बदरीप्रसाद बेटे को बहुत प्यार करते थे। यह देखकर कि मेरी बात से उसे चोट लगी है, तुरन्त बात बनाई--नहीं, नहीं, मैं तुम्हें नीच नहीं समझता। बहुत सम्भव है कि आज हम जो बात कर सकते हैं, वह कल स्थिति के बदल जाने से न कर सकें।

कमला--ईश्वर न करे कि मैं वह विपत्ति झेलने के लिए बैठा रहूँ, लेकिन इतना कह सकता हूँ कि आप जो कुछ कर जायँगे, उसमें कमलाप्रसाद को कभी किसी दशा में आपत्ति न होगी। आप घर के स्वामी हैं। आप ही ने यह सम्पत्ति बनाई है, आपको इस पर पूरा अधिकार है। निश्चय करने के पहले मैं जो चाहे कहूँ; लेकिन, जब आप एक बात तय कर देंगे, तो मैं उसके विरुद्ध जीभ तक न हिलाऊँगा।

बदरी॰-–तो कल पूर्णा के नाम चार हज़ार रुपए बैङ्क में जमा कर दो और यह शर्त लगा दो कि वह मूल में से कुछ न ले सके। उसके बाद रूपए हमारे हो जायँगे।

कमला को मानो चोट-सी लगी। बोले--खूब सोच लीजिये।

बदरीप्रसाद ने निश्चयात्मक स्वर में कहा--खूब सोच लिया है। देखना केवल यह है कि वह इसे स्वीकार करती है या नहीं।

कमला--क्या उसके स्वीकार करने भी कोई सन्देह है?

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