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प्रतिज्ञा

को प्रसन्न रखने ही का निश्चय किया। कमला रूठकर उसको कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। अधिक-से-अधिक उसे यहाँ से चला जाना पड़ेगा। सुमित्रा अप्रसन्न हो गई, तो न जाने क्या गज़ब ढाये, न-जाने उसके मन में कैसे-कैसे कुत्सित भाव उठे। बोली--बाबूजी, रेशमी साड़ियाँ पहनने का मुझे निषेध है, लेकर क्या करूँगी; ऐसा ही है तो कोई मोटी-झोटी धोती ला दीजियेगा।

यह कहकर उसने कमलाप्रसाद की ओर विवश नेत्रों से देखा। उनमें कितनी दीनता, कितनी क्षमा-प्रार्थना भरी हुई थी, मानों वे कह रही थीं--'लेना तो चाहती हूँ, पर लूँ कैसे! इन्हें आप देख ही रहे हैं, क्या घर से निकालने की इच्छा है?

कमलाप्रसाद ने कोई उत्तर नहीं दिया। साड़ियाँ चुपके से उठा लीं और पैर पटकते हुए बाहर चले गये।



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