स्कूली किताबों के एक ढेर और परीक्षा-प्रश्नों के परचों के एक विशाल बण्डल के सिवा, हमारी और कोई यादगार नहीं पहुंँची। इस दशा में यदि उस जमाने का कोई पुरातत्व वेत्ता इन किताबों और परचों की जाँच करेगा तो उसे यह देख कर कितना आश्चर्य होगा कि जिन विद्यार्थियों के ये परचे और पुस्तके हैं वे क्या आमरण ब्रह्मचारी बने रहने के लिए तैयार हो रहे थे? क्या वे गृहस्थ होकर बाल बच्चेदार होने की इच्छा नहीं रखते थे? यदि रखते थे तो फिर क्यों इन पुस्तकों और परचों में बच्चों के पालन-पोषण से सम्बन्ध रखने वाली बातों का कोई जिक्र नहीं? उसे यह हड़ विश्वास हो जायगा कि इन बच्चों या नवयुवकों ने मरण पर्यन्त विवाह न करने का प्रण किया था। अन्त में वह अपने सिद्धान्त इस तरह निश्चित करेगा---
"इन लोगों ने बहुत से विषयों को सीखने की खूब तैयारी की थी। इसमें सन्देह नहीं। क्योंकि यह बात इन पुस्तकों और परचों से अच्छी तरह साबित है। जिन मनुष्य जातियों का समूल ही नाश हो गया था उनकी और अन्य वर्तमान जातियों की भी, किताबें पढ़ने का इन लोगों को बढ़ा शौक था। और जातियों की विलुप्त या विद्यमान भाषाओं पर इनकी बड़ी भक्ति थी। इससे निःसन्देह मालूम होता है कि इन लोगों की निज की भाषा में बहुत कम पुस्तकें पढ़ने लायक़ थीं। परन्तु सब से बढ़ कर अचरज इस बात का