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प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि

ख़याल करके होता है कि बाल बच्चों के पालन-पोषण और विद्याभ्यास इत्यादि का कहीं नाम को भी इन पुस्तकों में ज़िक्र नहीं। जाँच से तो यही मालूम होता है कि ये लोग इतने मूर्ख न थे कि इस बहुत बड़े महत्व के विषय को न समझ सकते। इससे लाचार होकर यही कहना पड़ता है कि ये पाठ्य-पुस्तकें उस ज़माने के मठवासी महन्तों ने आमरण ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा करने वाले विद्यार्थियों ही के लिए बनाई थीं।"

बच्चों का जीवन या मरण, सुख या सर्वनाश, हित या अहित, सारी बातें, उनको लड़कपन में दी गई शिक्षा ही पर अवलम्बित रहती हैं। तिस पर भी जो लोग थोड़े ही दिनों में बच्चों के माँ बाप बनने वाले हैं, अर्थात् जो विवाह हो जाने पर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने वाले हैं, उनको बाल-बच्चों को पालने और उन्हें शिक्षा देने के विषय में भूल कर भी कभी एक शब्द तक नहीं सिखलाया जाता। क्या यह बहुत बड़े आश्चर्य की बात नहीं? क्या यह बहुत ही अद्भुत और चमत्कारिणी घटना नहीं? क्या यह बहुत ही विलक्षण पागलपन नहीं कि भावी सन्तति का भाग्य, अविचार से भरी हुई पुरानी चाल, प्रवृत्ति, अटकल, मूर्ख दाइयों की सलाह और घर की अन्ध-परम्परा-भक्त बड़ी बूढ़ियों की समझ के भरोसे छोड़ दिया जाय? हिसाब-किताब और बही-खाते का कुछ भी ज्ञान न रखने वाला कोई व्यापारी यदि कारोबार